जानें भारत को अंतरिक्ष का रास्ता दिखाने वाले विक्रम साराभाई के बारे में 5 बातें
कला के पारखी भी डा.विक्रम अंबालाल साराभाई ने अपने जीवनकाल में अपनी पहचान एक रचनात्मक वैज्ञानिक, सर्वोच्च स्तर के प्रर्वतक और समाज सेवी के रूप में बनाई। इसके अलावा वह शिक्षाविद्, कला के पारखी होने के साथ ही सामाजिक परिवर्तन करने वाले के रूप में भी जाने जाते हैं। आज इन्हीं के योगदान से भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी विशेष मौजूदगी दर्ज कराता है।अहमदाबाद में जन्मेगुजरात राज्य के अहमदाबाद शहर में जन्में डा. विक्रम अंबालाल साराभाई एक जैन परिवार से थे। इनका परिवार अहमदाबाद के उद्योगपति परिवारों में एक था। इनके परिवार का कई मीलों पर मालिकाना हक था। डा. विक्रम सराभाई के पिता अबांलाल और मां सरला देवी ने अपने बच्चों की शिक्षा दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया। डा. विक्रम सराभाई के 8 भाई बहन थे।केम्ब्रिज विश्वविद्यालय
डा. विक्रम सराभाई ने हाईस्कूल की पढाई गुजरात के सेठ चिमनलाल नागीदास विद्यालय से की। इसके बाद इंटरमीडिएट विज्ञान की परीक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे विदेश चले गए है। डा. विक्रम सराभाई ने इंग्लैंड के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सेंट जॉन कॉलेज में दाखिला लिया और मेहनत से पढाई की। इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में एक अच्छी रैंक हासिल की थी।पी.एच.डी की डिग्री
नोबेल पुरस्कार विजेता डा. विक्रम सराभाई ने सर सी. वी. रामन के मार्गदर्शन में ब्रह्मांडीय किरणों में अनुसंधान शुरू किया। इसके बाद 1947 में वह उष्णकटिबंधीय अक्षांश में कॉस्मिक किरणों की खोज शीर्षक वाले शोध पर पी.एच.डी की डिग्री पाने में सफल हुए। इसके साथ ही 1962 डा. विक्रम भौतिक-विज्ञान अनुभाग व भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर काबिज रहें। इसके अलावा वह आई.ए.ई.ए., वेरिना के महा सम्मलेनाध्यक्ष आदि पर रहे।मरणोपरांत पद्म विभूषण1962 शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार,1966 पद्मभूषण पाने वाले डा. विक्रम सराभाई 30 दिसंबर 1971 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। डा. विक्रम सराभाई को 1972 में मरणोपरांत पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया। इतना ही नहीं उनके सम्मान में तिरूवनंतपुरम रॉकेटों के लिए ठोस और द्रव नोदकों में विशेषज्ञता रखने वाले अनुसंधान संस्थान, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र खुला है।
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