भारतीय सिनेमा के जनक कहे जाने वाले दादा साहेब फाल्के की आज 145वीं जयंती पर बीबीसी हिंदी लाया है उनकी कुछ तस्वीरों और उनसे जुड़ी कुछ बातों का संकंलन आपके लिए.


दादा साहेब फाल्के का पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था.हाल ही में मुंबई की एक सरकारी इमारत पर उनका चित्र बनाया गया जिसका लोकार्पण अमिताभ बच्चन ने किया था.चंद्रशेखर बताते हैं कि फाल्के लंदन से फ़िल्म बनाने की तकनीक तो सीख आए लेकिन पहली फ़ीचर फ़िल्म राजा हरिश्चंद्र बनाना अपने आप में एक बड़ा संघर्ष था. फाल्के की पत्नी सरस्वती बाई ने अपने गहने गिरवी रखकर पैसे जुटाने में मदद की.दादा साहेब फाल्के ने सिनेमा की शुरुआत कर भारत में एक क्रांति की थी और शुरु में उन्होंने बहुत समृद्धि का दौर देखा. कहते हैं कि उनके घर के कपड़े पेरिस से धुल कर आते थे और पैसे से लदी बैलगाड़ियाँ उनके घर आया करती थीं. हालांकि नाती चंद्रशेखर पुसालकर इन बातों पर मुस्कुरा भर देते हैं.
उन्होंने 5 पाउंड में एक कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया. फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किए.


ऐसे काम करने का प्रभाव उनकी सेहत पर पड़ा. उनकी एक आंख जाती रही लेकिन ऐसे कठिन समय में उनकी पत्नी सरस्वती बाई ने उनका साथ दिया और सामाजिक निष्कासन और सामाजिक गुस्से को चुनौती देते हुए उन्होंने अपने जेवर गिरवी रख दिए.फालके के फिल्म निर्माण के प्रयास और पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण पर मराठी में एक फीचर फिल्म 'हरिश्चंद्राची फॅक्टरी' 2001 में बनी, जिसे देश विदेश में सराहा गया.पहली मूक फिल्म "राजा हरिश्चंन्द्र" के बाद दादासाहब ने दो और पौराणिक फिल्में "भस्मासुर मोहिनी" और "सावित्री" बनाई.1915 में अपनी इन तीन फिल्मों के साथ दादासाहब विदेश चले गए. लंदन में इन फिल्मों की बहुत प्रशंसा हुई. कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर 1938 में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म "गंगावतरण" बनाई.

Posted By: Satyendra Kumar Singh