एवरेस्ट चढ़ने से ज़्यादा मुश्किल था खाना: पूर्णा
एक आदिवासी परिवार में जन्मी पूर्णा मलवथ के माता-पिता खेतिहर मज़दूर हैं लेकिन अपनी बेटी के सहारे अब पूरी दुनिया में मशहूर हो गए हैं क्योंकि 25 मई की सुबह छह बजे पूर्णा एवरेस्ट पर पहुंचने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की बन गई.पूर्णा इस मिशन में सफल होने वाली अकेली नहीं. उनके साथ 19 साल के आनंद भी हैं जो संभवत: एवरेस्ट पर पहुंचने वाले पहले दलित हैं. मिशन पूरा होने के बाद नेपाल के एक बेस कैंप पर मौजूद पूर्णा और उनके साथियों से हमने फ़ोन पर बातचीत की.पूर्णा की ख़ुशी का अंदाज़ा उनकी चहकती हुई आवाज़ से लगा. वो कहती हैं, ''मैंने अख़बार में पढ़ा था कि मैं एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की बन गई हूं, मैं बता नहीं सकती कि यह पढ़कर मुझे कितनी ख़ुशी हुई.''
पहाड़ों से लौटते वक़्त सैटेलाइट फ़ोन के ज़रिए कई मुश्किलों के बाद पूर्णा से बात हो पाई वो इस बात से भी बेहद ख़ुश थीं कि मैंने उनसे बात करने के लिए इतनी कोशिशें की.शारीरिक ताक़तनिज़ामाबाद ज़िले के जिस इलाक़े में पूर्णा रहती है वहां न बिजली है, न पानी, न आम ज़िंदगी की सुख सुविधाएं.
भारत जैसे देश में जहां ग़रीब और आदिवासी बच्चों के लिए मौके बेहद कम हैं क्या एक लड़की के तौर पर क्या पूर्णा ने ख़ुद को कभी कमज़ोर महसूस किया?पूर्णा ने पूरे ज़ोर-शोर से इसे नकारते हुए कहा, ''लड़कियां अपने आप में कमज़ोर नहीं, असल में आदमी उन्हें कमज़ोर समझते हैं. मैंने अपने इस काम से साबित कर दिया है कि लड़कियां भी सब कुछ कर सकती हैं.''पूर्णा ने इस मिशन के दौरान कई आईपीएस अधिकारियों को अपनी मदद करते देखा और वो भी आगे चलकर आईपीएस बनना चाहती हैं. लेकिन ऐसा क्यों है ये जानने के लिए इस बार मुझे कोई सवाल नहीं करना पड़ा.वो कहती है, ''आईपीएस अधिकारियों की बात सब सुनते हैं. वो जो कहते हैं वही होता है. उनके पास बहुत ताक़त है. मैं आईपीएस बनकर अपने इलाक़े के उन लोगों की बात आगे कहना चाहती हूं जो ख़ुद बोलने से डरते. मैं अपने जैसे लोगों की आवाज़ बनना चाहती हूं.''
एक लंबा सफ़र तय कर एवरेस्ट पर पहुंचने के बाद वहां का नज़ारा कैसा था इसके जवाब में पूर्णा कहती हैं, ''मुझे दुनिया बहुत छो़टी दिखाई दी. मेरे हर तरफ बर्फ से ढके सफेद पहाड़ थे जो बहुत ख़ूबसूरत थे. ऐसा लग रहा था कि मैं स्वर्ग में पहुंच गई हूं.''