वंशावली के साथ सचिव का सर्टिफिकेट नागरिक पहचान
जस्टिस रंजन गोगोई और आरएफ नरिमन की खंडपीठ ने मंगलवार को गुवाहाटी हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया जिसमें नागरिकता के लिए दावा करने वाले इन सर्टिफिकेट को अवैध बताया गया था। सर्वोच्च अदालत की खंडपीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि ग्राम पंचायत के सचिव की ओर से जारी सर्टिफिकेट नागरिकता का सुबूत तभी हो सकता है जबकि उसके साथ परिवार की वंशावली का भी विस्तृत ब्योरा हो। विगत 22 नवंबर को सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि ग्राम पंचायत की ओर से जारी निवासी होने का सर्टिफिकेट नागरिकता का दस्तावेज नहीं है। नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) के संदर्भ में इसका कोई अर्थ नहीं अगर इसके समर्थन में कोई अन्य वैध दस्तावेज न लगाया जाए।
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फैसले से असम के 48 लाख लोग प्रभावित
उल्लेखनीय है कि नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) का मसौदा 31 दिसंबर या उससे पहले प्रकाशित किया जाना है। यह रेजिस्टर का मकसद असम में अवैध आव्रजकों की पहचान करना है। सीमावर्ती राज्य असम में कुल 3.29 करोड़ लोगों में से 48 लाख लोगों ने ग्राम पंचायत के सचिवों की ओर से जारी सर्टिफिकेट के दम पर ही नागरिकता के राष्ट्रीय रेजिस्टर (एनआरसी) में अपना नाम दर्ज कराने के लिए दावा किया है।
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आधार, बर्थ सर्टिफिकेट और पासपोर्ट नहीं हैं वैलिड
बांबे हाईकोर्ट के एक फैसले के मुताबिक बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट और आधार कार्ड अकेले भारत की नागरिकता के पहचान के दस्तावेज नहीं हो सकते। इस फैसले के मुताबिक पासपोर्ट, आधार और बर्थ सर्टिफिकेट के साथ अन्य लीगल दस्तावेज दिखाना जरूरी होता है। ताकि यह साबित हो सके कि नागरिकता का दावा करने वाला शख्स भारत का वास्तविक निवासी है। नागरिकता के कानून के अनुसार 1 जुलाई, 1987 के बाद भारत में पैदा हुआ कोई भी भारत का नागरिक तभी हो सकता है जब उसके माता-पिता में कोई एक भारतीय नागरिक हों। 26 जनवरी, 1950 से लेकर 1 जुलाईख् 1987 से पहले भारत में पैदा हुआ हर व्यक्ति स्वत: भारतीय नागरिक हो जाता था।
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