अधिकारियों का कहना है कि लड़ाकों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई जिसकी वजह से 31 लोग मारे गए.
ये प्रदर्शनकारी मिसराता के लड़ाकों के मुख्यालय की ओर बढ़ रहे थे और उनसे त्रिपोली से चले जाने के लिए कह रहे थे.
इस घटना के कुछ घंटे बाद सेना उस जगह पर आई जहां लड़ाके छिपे हुए थे.
लीबिया की सरकार इन लड़ाकों पर लगाम कसने के लिए जूझती रही है जो देश के कई हिस्सों पर अपना नियंत्रण रखते हैं.
प्रधानमंत्री अली ज़ीडान ने कहा कि सभी लड़ाकुओं को त्रिपोली छोड़ना पड़ेगा. उनके इस संबोधन का टेलीविज़न प्रसारण भी हुआ.
लीबिया में ग़द्दाफ़ी के जाने के बाद भी अब तक संविधान नहीं बन पाया है
त्रिपोली में मौज़ूद बीबीसी संवाददाता राणा जावेद का कहना है कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन लड़ाकों को कैसे हटाया जाएगा.
लीबिया में आम नागरिक ये मांग करते रहे हैं कि इन लड़ाकू गुटों को भंग कर दिया जाए या उन्हें सेना में शामिल कर दिया जाए. ये गुट लीबिया में 2011 में हुई क्रांति के दौरान पनपे थे.
सरकारी बाधाएं
ज़ीडान ने अपने टीवी संबोधन में माहौल बिगाड़ने के लिए टीवी चैनलों को भी दोषी ठहराया और उन पर नियंत्रण करने की सलाह दी.
लीबिया में फिलहाल स्थायी लोकतंत्र नहीं है जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है.
ज़ीडान ने रॉयटर्स से कहा, "प्रदर्शन शांतिपूर्ण था और इसे गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दी थी. जब ये प्रदर्शनकारी लड़ाकों के मुख्यालय वाले इलाक़े में दाख़िल हुए तो उन पर गोलियां चलाई गईं.''
त्रिपोली के स्थानीय परिषद् के नेता सआदत अल बादरी भी शुरुआती प्रदर्शन में शामिल थे. उन्होंने कहा कि यह विरोध-प्रदर्शन शांतिपूर्ण था लेकिन लड़ाकुओं ने उनके हथियारों को निशाने पर ले लिया.
उनका कहना था, "प्रदर्शनकारियों के पास हथियार नहीं थे और वे शांतिपूर्ण तरीके से लीबिया बोल रहे थे." उन्होंने कहा कि यह शहर सशस्त्र संघर्ष के जोख़िम से जूझ रहा है.
संघर्ष और तनाव
बीबीसी संवाददाता के मुताबिक़ शुक्रवार की शाम संघर्ष और तनाव का माहौल बना रहा.
पिछले महीने ज़ीडान को एक लड़ाकू गुट ने बंधक बना लिया था.
दिन की शुरुआत में एयरपोर्ट रोड के इलाके में सैन्य विमान उड़ते हुए देखे गए और गोलीबारी की आवाज़ गूंजती रही.
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की घटना के एक घंटे बाद हथियारबंद लोगों ने लड़ाकों के मुख्यालय पर धावा बोला और कुछ इमारतों में आग लगा दी.
बताया जाता है कि सेना के वाहन भी वहां पहुंचे और उन्होंने हिंसा पर काबू पाने का प्रयास करते हुए रास्ते बंद कर दिए.
पिछले महीने ज़ीडान को एक लड़ाकू गुट ने त्रिपोली में कुछ देरे के लिए बंधक भी बना लिया था.
पूर्व तानाशाह शासक कर्नल ग़द्दाफ़ी को लीबिया से हटाए दो वर्ष हो चुके हैं लेकिन वहां अब तक कोई संविधान नहीं है. धर्मनिरपेक्ष और इस्लामी ताकतों के बीच भी गहरे मतभेद हैं.
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