ये सभी देश अमरीकी अगुवाई में बने गठबंधन में शामिल हैं.
ब्रिटेन के विदेश मंत्री फ़िलिप हैमंड और अमरीकी विदेश मंत्री जॉन केरी इस बैठक की संयुक्त रूप से मेज़बानी करेंगे.
अब बनेगी लंबी लड़ाई की रणनीति
इस्लामिक स्टेट ने सीरिया और इराक़ के कई बड़े हिस्सों पर क़ब्ज़ा कर रखा है और वहां ख़िलाफ़त की स्थापना कर कठोर शरीआ क़ानून लागू कर दिया है. वे नए इलाक़ों की ओर भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
दिन भर चलने वाले इस सम्मेलन में इस चरमपंथी संगठन को मिलने वाले पैसों और नए लड़ाकों की भर्ती को रोकने के उपायों पर चर्चा की जाएगी.
इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ लड़ रहे लोगों को और ज़्यादा सैन्य मदद और मानवीय मदद देने पर भी बातचीत होगी.
इसके साथ ही लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष की रणनीति भी तय की जाएगी.
'लड़ाई इस्लाम के ख़िलाफ़ नहीं'
जॉन केरी ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि लोग इस चरमपंथी संगठन को हराने के लिए पहले से कहीं ज़्यादा प्रतिबद्ध है.
उन्होंने इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की प्रमुख फ़ेडरिका मोगरीनी से भी बात की है.
मोगरीनी ने कहा कि यह पश्चिमी देशों और इस्लाम के बीच की लड़ाई नहीं है. उन्होंने कहा, ''हम उनके ख़िलाफ़ हैं जो अरब समेत कई देशों में निहायत ही क्रूरता से क़हर ढा रहे हैं.''
हथियार
इराक़ी प्रधानमंत्री हैदर अल आबदी भी इस बैठक में शिरकत करेंगे. उन्होंने गठबंधन के देशों की तारीफ़ करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि चरमपंथी संगठन से ज़मीन पर लड़ने वालों को ज़्यादा साज़ो सामान और बेहतर प्रशिक्षण की ज़रूरत है.
इस बैठक में अमरीका, ब्रिटेन, बहरीन, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, मिस्र, फ़्रांस, जर्मनी, इराक़, इटली, जॉर्डन और कुवैत के नेता भाग ले रहे हैं. इसके अलावा नीदरलैंड्स, नॉर्वे, क़तर, सऊदी अरब, स्पेन, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात भी भाग लेंगे.
अमरीका के अगुवाई वाले संगठन ने इस्लामिक स्टेट के ठिकानों पर अगस्त से अब तक एक हज़ार से ज़्यादा हवाई हमले किए हैं.
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