प्रयागराज ब्यूरो । यूपीआरटीओयू के मानविकी विद्याशाखा के तत्वावधान में हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर वैश्विक परिदृश्य में 'हिंदी भाषा दशा और दिशाÓ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता आचार्य शिव प्रसाद शुक्ल, हिन्दी विभाग एयू ने कहा कि भाषा साहित्य का आधार होती है. व्यक्ति अपने परिवेश से भाषा ग्रहण करता है. अत: प्रवासियों की हिन्दी और भारत की विभिन्न प्रान्तों में बोली जाने वाली हिन्दी का स्वरूप भिन्न है. यद्यपि प्रवासी अपना देश छोड़कर दूसरे देश में बसा होता है. अत: उस पर दो देश का प्रभाव होता है. इसलिए प्रवासी की भाषा परिवर्तन स्वाभाविक है. विश्व में आज हमें तरह-तरह की हिन्दी देखने, पढऩे और सुनने को मिलती है. भारत में ही हिन्दी की तकरीबन 17 उपबोलियां प्राप्त होती है. इन उपभाषाओं को अपनी स्थानीयता, अपनी भिन्न शैली है. भाषा पर्यावरण का हिस्सा है. उत्तरोत्तर उसकी भाषा में परिवर्तन होता है. आचार्य शुक्ल ने कहा कि शिक्षकों का यह दायित्व है कि वह युवाओं को चरित्र व राष्ट्र निर्माण की शिक्षा प्रदान करें.

बढ़ता जा रहा प्रचार-प्रसार

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति आचार्य सत्यकाम ने कहा कि हिन्दी का प्रचार और प्रसार निरन्तर वैश्विक स्तर पर बढ़ता जा रहा है जो इसके महत्व को स्पष्ट करता है. आज विश्व के अनेक देशों में मारीशस, त्रिनाड, टोबैगो, फिजी, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अफ्र का आदि देशों में व्यापक रूप से साहित्यिक और भाषायी रूप में प्रयुक्त हो रही है. विज्ञान तथा प्रौद्योगिक क्षेत्र में हिन्दी की व्यापक ग्राह्यता उसकी सर्व स्वीकारिता को दर्शाती है. कम्प्यूटर, इन्टरनेट और एआई जैसे तकनीकों में हिन्दी वैश्विक स्तर पर पहचान स्थापित कर रही है. कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हिन्दी केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के बहुसंख्यक लोगों के द्वारा पढ़ी जाती हैं.

विश्व के कई यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जा रही हिंदी

विश्व के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी विषय के रूप में पढ़ाई जाती है. भारत में हिन्दी की व्यापकता हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक हो रही है. कार्यक्रम का संचालन संगोष्ठी के आयोजन सचिव अनुपम ने किया. आभार व्यक्त करते हुए कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने कहा कि हिन्दी आम आदमी के भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है. यह हमारे जीवन मूल्यों संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक सम्प्रेषक और परिचायक भी है. यह विश्व में तीसरी सबसे बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्परिक ज्ञान प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु का काम करती है.