कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट न्याय व्यवस्था को पारदर्शी बनाते हुए लगातार तमाम बड़े बदलाव कर रही है। इस क्रम में बुधवार को यहां न्याय की प्रतिमा में एक बड़ा बदलाव हुआ है। भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में किया गया यह बदलाव इस तरफ इशारा करता है कि देश का कानून अंधा नहीं है और यह केवल सजा का प्रतीक नहीं है। अब तक इसकी आंखों में बंधी पट्टी अंधेपनऔर तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक थी। सुप्रीम कोर्ट के जजों की लाइब्रेरी में अब लेडी जस्टिस यानी कि न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई। लेडी जस्टिस की मूर्ति की आंखों से पट्टी हटा दी गई है जिससे उनकी आंखें खुली हुई हैं। इसके अलावा लेडी जस्टिस की प्रतिमा अब तलवार की जगह भारतीय संविधान की प्रति थामे हुए है।
लेडी जस्टिस की प्रतिमा का महत्व
बतादें कि पारंपरिक रूप से, आंखों पर पट्टी बांधने का मतलब कानून के समक्ष समानता होता है, जिसका अर्थ है कि न्याय पक्षों की स्थिति, धन या शक्ति से प्रभावित नहीं होना चाहिए। वहीं तलवार अधिकार और अन्याय को दंडित करने की क्षमता का प्रतीक है। लेडी जस्टिस की प्रतिमा दर्शाती है कि देश का कानून संविधान के तहत सभी को समान रूप से देखता है। न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया में तलवार की नहीं, बल्कि संविधान की शक्ति प्रबल होती है। हालांकि, न्याय की तराजू को न्याय की देवी के दाहिने हाथ में रखा गया है, जो सामाजिक संतुलन का प्रतीक है और किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों के तथ्यों और तर्कों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के महत्व को दर्शाता है।
नए प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया
इससे पहले, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में इसके नए प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया। सीजेआई चंद्रचूड़ के कार्यकाल के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने यूट्यूब पर संविधान पीठ की कार्यवाही का लाइव-स्ट्रीमिंग शुरू किया और राष्ट्रीय महत्व की ऐसी सुनवाई के लाइव ट्रांसक्रिप्शन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी का का इस्तेमाल किया। NEET-UG मामले और आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल मामले में न्यायिक सुनवाई ने जनता का भरपूर ध्यान खींचा था।
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