इसमें हिस्सा लेने के लिए दुनिया भर से पर्यटक पहुंचते हैं. इस फेस्टिवल का रोमांच बीबीसी संवाददाता शालू यादव को भी इसमें हिस्सा लेने से रोक नहीं पाया.
इस उत्सव में भाग लेने का रोमांच और उससे जुड़े अपराध बोध के बारे में पढ़िए.
शालू यादव का ब्लॉग, विस्तार से
जब मैं टोमाटीना फेस्टिवल में हिस्सा लेने की योजना बना रही थी, उस वक्त जयपुर की एक सब्ज़ी मंडी से 75 किलो टमाटरों पर डाका पड़ने की खबरें आ रही थी.
मैंने मां को लंदन से फ़ोन लगाया और अपने प्लान के बारे में बताया. ज़ाहिर है उनकी प्रतिक्रिया आह-भरी थी.
जैसे ही मैंने बताया कि मैं स्पेन में उस फेस्टिवल में हिस्सा लेने जा रही हूं, जहां एक लाख टन टमाटरों को एक-दूसरे पर फेंक कर बरबाद किया जाता है, मां झट से बोली, ''यहां हम बिना टमाटर की तरकारी खा रहे हैं, और वहां तू टमाटरों की बर्बादी में हिस्सा लेने जा रही है!"
अपराध बोध
मां के ताने ने मेरे मन में एक अपराध बोध सा डाल दिया, लेकिन इस ताने ने फेस्टिवल में हिस्सा लेने के मेरे जुनून को बढ़ा दिया.
मैं 400 लोगों की एक ऐसी मंडली के साथ हो चली जो ख़ास टोमाटीना में हिस्सा लेने के लिए स्पेन जा रही थी. इनमें ज़्यादातर अमरीकी, ऑस्ट्रेलियाई और न्यूज़ीलैंड के पर्यटक थे.
फेस्टिवल की एक रात पहले सबके चेहरों पर उत्साह देखते ही बनता था.
ऑस्ट्रेलिया से आई सारा से मैंने पूछा कि उसे दूसरों पर टमाटर फेंकने का आइडिया कैसा लगा तो वो हंसते हुई बोली, "मुझे ये पागलपन पसंद है. अगर कोई चीज़ महंगी हो तो उसे बर्बाद करने का अलग ही मज़ा है. हमें महंगी चीज़ों पर इतना निर्भर होने की ज़रूरत क्या है? मेरे हिसाब से तो हर महंगी चीज़ को यूं ही बर्बाद कर उसकी झूठी महत्ता को ख़त्म किया जा सकता है."
सारा की बात ग़ौर करने वाली थी, क्या बिना टमाटर किसी व्यंजन को स्वादिष्ट नहीं बनाया जा सकता? भारतीय व्यंजन आख़िर टमाटरों पर इतना निर्भर क्यों हैं!
लेकिन यही बात अगर मैं अपनी मां से कहूं तो उनके दिल पर छुरी सी चल जाएगी.
‘पागलपन’ का इतिहास
ख़ैर वो सुबह आ गई और हमारी टोली बुन्योल के लिए निकल पड़ी जहां ये फेस्टिवल हर साल 28 अगस्त को आयोजित होता है.
फेस्टिवल में 20,000 लोगों की भीड़ के चेहरों पर टमाटरों से नहाने की तड़प की वो झलक गुदगुदा देने वाली थी.
वैसे इस फेस्टिवल के शुरू होने की कहानी भी गुदगुदाने वाली है.
कहा जाता है कि साल 1945 में बुन्योल में कुछ किशोरों ने लड़ाई-लड़ाई में एक दूसरे पर टमाटर फेंकने शुरू कर दिए और ये लड़ाई पुलिस के आने तक नहीं रूकी.
पुलिस की गिरफ्त से तो वे छूट गए, लेकिन अगले साल उसी तारीख को उन्होंने ये ‘लड़ाई’ दोबारा लड़ी जिसके बाद से ये एक सालाना फेस्टिवल बन गया.
हालांकि स्पेन की सरकार ने इसे कई बार अवैध घोषित किया लेकिन लोगों ने हार नहीं मानी और इस फेस्टिवल को कानूनी रूप दिलवाने के लिए कई धरने दिए.
टॉपडेक ट्रैवल कंपनी की एक प्रतिनिधित्व शे हैरिंग्टन ने बताया, "हम 2005 से इस फेस्टिवल में लोगों को ला रहे हैं. साल 2013 से पहले टोमाटीना में 40,000 से ज़्यादा लोग आते थे. आयोजक इसकी बढ़ती लोकप्रियता को संभाल नहीं पाए. अब केवल 20,000 लोग ही इस फेस्टिवल में हिस्सा ले सकते हैं."
टमाटर स्वादिष्ट थे!
बुन्योल की गली में ठीक 11 बजे बिगुल बजा...बस फिर जैसे ही एक लाख टन टमाटरों से भरे ट्रकों ने लोगों पर टमाटरों की बौछार शुरू की, पूरी गली पलक झपकते ही लाल हो गई.
एक लाख टन टमाटरों की ऐसी बारिश हुई कि मेरे पांव टमाटरों के दो फीट गहरे दलदल में थे. हर किसी के सर से लेकर पांव तक बस टमाटर ही टमाटर नज़र आ रहे थे.
मैंने न सिर्फ़ अपने शरीर पर टमाटर खाए बल्कि कुछ मेरे मुंह में भी आ गिरे!
यक़ीन मानिए, ये टमाटर बेहद रसीले और स्वादिष्ट थे. भारत की मंडियों में सस्ते दामों में मिलने वाले टमाटरों से कहीं बेहतर रंग और स्वाद था स्पेन के इन ‘नालायक’ टमाटरों में.
जबकि ये टमाटर ख़ास इस फेस्टिवल के लिए दक्षिण स्पेन में उगाए जाते हैं और इन्हें खाने लायक नहीं माना जाता.
इऩ लाल, रसीले टमाटरों से खेलते हुए मेरे मन में अपराध बोध का प्रेत फिर जागा.
मैं इन स्वादिष्ट टमाटरों को भला बर्बाद कैसे कर सकती हूं? लेकिन इन्हें अपनी मुट्ठी में भर अपनी मां के लिए भारत भी तो नहीं ले जा सकती.