प्रयागराज में कुंभ महापर्व 2019 का प्रारंभ आज मकर संक्रांति पर शाही स्नान से हुआ। 15 जनवरी से 4 मार्च तक यानि 50 दिनों तक चलने वाले इस कुंभ मेले में लाखों लोगों के श्रद्धा की डुबकी लगाने का अनुमान है।  

गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम तट पर होने वाले इस महापर्व का देश—दुनिया के लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। आस्था और आध्यात्म के इस महा उत्सव में कल्पवास का विशेष ही महत्व होता है। इस वर्ष 10 लाख से अधिक लोग कल्पवास करेंगे।

कल्पवास का महत्व

ऐसा माना जाता है कि 45 दिन के कल्पवास से आत्मा तो शुद्ध होती ही है, लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि भी होती है। कल्पवास के लिए उम्र का बंधन नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि मोह—माया से मुक्त व्यक्तियों को ही कल्पवास करना चाहिए।

पद्म पुराण एवं ब्रह्म पुराण के अनुसार, कल्पवास पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर माघ मास की एकादशी तक होता है। कल्पवास करने वालों को महर्षि दत्तात्रेय कड़े नियम का पालन करना होता है। महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास करने वालों के लिए नियम बनाए हैं, जिनका जिक्र पद्म पुराण में किया गया है।

आइए जानते हैं कि वे नियम क्या हैं:

शाही स्नान के साथ कुंभ महापर्व 2019 का आगाज,जानें कल्पवास का महत्व और उसके 21 नियम

1. सत्यवचन— सदा सत्य बोलें।

2. कल्पवास के समय व्यक्ति को हिंसा नहीं करनी चाहिए। उनको अहिंसा के मार्ग को अपनाना चाहिए।

3. इन्द्रियों पर नियंत्रण— मन, कर्म और वचन से सदाचरण के लिए इन्द्रियों पर नियंत्रण आवश्यक है।

4. दयाभाव — सभी प्राणियों के प्रति दयालु होना चाहिए।

5. ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य माना गया है।

6. व्यसनों का त्याग — वैसे सभी चीजों का प्रयोग वर्जित है, जो आपके अंदर नकारात्मकता को जन्म देती है।

7. ब्रह्म मुहूर्त में जागना— कल्पवास करने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व जग जाना है।

8. स्नान- प्रतिदिन दिन में तीन बार सुरसरि-स्न्नान करना जरूरी है।

9. त्रिकाल संध्या— प्रातः सूर्योदय के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक, दोपहर के 12 बजे से 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक एवं शाम को सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक का समय संधिकाल कहलाता है। अतः सुबह, दोपहर एवं सांय- इन तीनों समय संध्या करनी चाहिए। त्रिकाल संध्या करने वालों को अमिट पुण्यपुंज प्राप्त होता है।

10. पिण्डदान— पितरों का पिण्डदान करना चाहिए। 

11. दान— अपनी शक्ति के अनुसार जो बन पड़े वो दान करें।

12. अन्तर्मुखी जप—ऐसे जाप मन की भावनाओं को परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं। मन के अंदर सकारात्मक सोच का संचार होता है, जीवन जीने की एक सही राह दिखाई देती है, सही-गलत की समझ पैदा होती है।

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13. सत्संग— आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए सत्संग में शामिल हों।

14. क्षेत्र संन्यास— कल्पवास के संकल्पित क्षेत्र के बाहर जाना वर्जित है।

15. परनिन्दा त्याग— किसी भी व्यक्ति की निंदा न करें।

16. सेवा भाव— साधु—संन्यासियों की सेवा करें।

17. जप एवं संकीर्तन— ईश्वर का जप करें।

18. भोजन— कल्पवास के समय एक समय ही भोजन करना है।

19. भूमि शयन— इस दौरान व्यक्ति को जमीन पर ही सोना है।

20. अग्नि सेवन न कराना।

इनमें से ब्रह्मचर्य, व्रत एवं उपवास, देव पूजन, सत्संग, दान का विशेष महत्व है।

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