पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Krishna Janmashtami 2021: मतानुसार 30 अगस्त 2021,सोमवार के दिन ही श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी का व्रत,चंद्रमा को अर्ध्य-दान,जागरण-कीर्तन तथा कृष्ण जन्म से संबद्ध अन्य सभी पूजन कार्य करने शास्त्र सम्मत रहेंगे।अगले दिन 31अगस्त,मंगलवार को व्रत का पारण होगा। इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत "जयंती योग " में होगा, क्योंकि इस बार जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र युक्त है। जन्माष्टमी पर जयंती योग में बुद्धवार या सोमवार का योग आ जाये तो वह अत्युत्कृष्ट फलदायक हो जाती है।
कैसे रखें जन्माष्टमी व्रत
जन्माष्टमी के दिन प्रात: स्नानादि के उपरान्त श्रीकृष्ण भगवान के लिए व्रत करने, उपवास करने, एवं भक्ति करने का संकल्प लेना चाहिए, (अपनी मनोकामनाओं की सिद्वियों के लिए जन्माष्टमी व्रत करने का संकल्प)प्रातः काल ध्वजारोहण एवं संकल्प के साथ व्रतानुष्ठान करके "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय। ॐ कृष्णाय वासुदेवाय गोविन्दाय नमो नमः।" आदि मंत्र जाप करें तदोपरान्त चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते या नारियल स्थापित करें एवं कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी बनायें। इन आम के पत्तों से वातावरण शुद्व एवं नारियल से वातावरण पूर्ण होता है। पूर्व या उत्तर की ओर मुॅह करके बैठें, एक थाली में कुमकुम, चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल, मौली, कलावा, रख लें। खोये का प्रसाद, ऋतु फल, माखन मिश्री ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्जवलित करें, इसके पश्चात् वासुदेव-देवकी, एवं नन्द-यशोदा, की पूजा अर्चना करें। इसके उपरांत चंद्रमा का पूजन करें।
कैसे करें पूजा
इसके पश्चात् दिन में व्रत रखने के उपरान्त रात्रि 8 बजे पुन: पूजा आरम्भ करें और एक खीरे को काटकर उसमें श्रीकृष्ण का विग्रह रूप स्थापित करें अर्थात् श्री कृष्ण अभी मां के गर्भ में है, इसके बाद लगभग *रात्रि 10 बजे विग्रह अर्थात लड्डू गोपाल को खीरे से निकाल कर पंचामृत से उसका अभिषेक करें। *पंचामृत में विधमान दूध से वंशवृद्वि, दही से स्वास्थ्य, घी से समृद्वि, शहद से मधुरता, बूरा से परोपकार की भावना एवं गंगा जल से भक्ति की भावना प्राप्त होती है। श्रीकृष्ण को पंचामृत का अभिषेक शंख से करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है। इसके बाद तीसरे चरण की पूजा रात्रि 12 बजे आरम्भ करें क्योंकि श्रीकृष्ण जी का इस धरती पर प्राकट्य रात्रि 12 बजे हुआ था। इसके बाद इस समय भगवान श्रीकृष्ण का निराजन 11 अथवा 21 बत्तियों के दीपक से करें।
अंत में नमस्कार करके प्रार्थना करें:-
हे प्रभु! दुःख व शोकरूपी समुद्र से मेरी रक्षा करो फिर भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान/नाम मंत्रों का यथाशक्ति जाप करें।ध्यान मंत्र:- *ॐ नारायणाय नमः,अच्युताय नमः,अनन्ताय नमः,वासुदेवाय नमः।
कैसे करें व्रत का पारण
प्रत्येक व्रत के अंत में पारण होता है, जो व्रत के दूसरे दिन प्रात: किया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण, काल निर्णय के अनुसार जब तक अष्टमी चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिये। अत: तिथि तथा नक्षत्र के अन्त में ही पारण करना चाहिए। व्रत का पारण नंदोत्सव में कढ़ी चावल से करें एवं तुलसी की पूजा करें। इस प्रकार व्रत अर्चन करने से व्रती की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है और नि:संतान दंपत्ति को संतान प्राप्त होती है।
विशेष:-
इस दिन अभीष्ट सन्तान प्राप्ति के लिए विधिपूर्वक संतान गोपाल स्तोत्र या हरिवंश पुराण का पाठ करने का विशेष माहात्म्य है।
श्रीकृष्ण आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की...॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥