परमहंस योगानंद। सच्ची मुस्कान परमानंद की मुस्कान है, जो ध्यान करने से आती है। जब आप ईश्वर की विद्यमानता के आनंद का अनुभव करते हैं, तो चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। अस्तित्व के गहन आनंद से मुस्कान आती है। उस आनंद को आप भी प्राप्त कर सकते हैं। एक सुगंध की भांति यह पुष्पित आत्मा के हृदय से प्रवाहित होती है। यह आनंद अपने दिव्य परमानंद के जल में दूसरों को स्नान करने के लिए आमंत्रित करता है। सामान्य मनुष्य मन की चार अवस्थाओं से परिचित है। जब इच्छा की पूर्ति हो जाती है, तो वह प्रसन्न हो जाता है। जब इच्छा पूर्ण नहीं होती है, वह अप्रसन्न हो जाता है। जब वह न तो खुश होता है और न दुखी, तो वह उकता जाता है। जब ये तीनों भाव तथा मन की तीनों अवस्थाएं-सुख, दुख और उकताहट मिट जाती हैं, तो उसे शांति मिलती है। शांति बारी-बारी से आने वाले दुख और सुख तथा उदासी की अनुपस्थिति है। यह बहुत इच्छित अवस्था है।
दुख और सुख के शिखरों पर उत्तेजित सवारी के बाद बीच-बीच में उकताहट के गर्त में गोते खाने के पश्चात शांति के निश्चल सागर पर तैरने का आप आनंद लेते हैं। परंतु शांति से भी बढ़कर है परमानंद-जो आत्मा का आनंद है। यह नित्य नवीन आनंद है, जो कभी लुप्त नहीं होता, जबकि अनंतता तक आपकी आत्मा के साथ रहता है। वह आनंद केवल ईश्वर के बोध द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यदि आप चंद्रमा की चांदनी में पानी से भरे एक बर्तन को रखें और पानी को हिला दें, तो उसमें चंद्रमा का विकृत प्रतिबिंब बनेगा। जब आप बर्तन में पानी की तरंगों को शांत कर देते हैं, तो प्रतिबिंब स्पष्ट हो जाता है। जिस समय बर्तन में पानी शांत होता है और चंद्रमा का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देता है, उसकी तुलना ध्यान में शांति की अवस्था और उससे भी अधिक गहरी निश्चलता की अवस्था से की जा सकती है। ध्यान की शांति में मन से समस्त संवेदनाएं और विचारों की तरंगें समाप्त हो जाती हैं। निश्चलता की और अधिक गहन अवस्था में व्यक्ति को उस स्थिरता में ईश्वर की विद्यमानता के चंद्रमा रूप प्रतिबिंब का बोध होता है।
शांति एक नकारात्मक अवस्था है, क्योंकि यह केवल सुख, दुख और उदासी की अनुपस्थिति की अवस्था है और इसीलिए कुछ समय पश्चात ध्यान करने वाला व्यक्ति फिर से तरंगों की गतिशीलता का अनुभव पाने की इच्छा की ओर आकर्षित हो जाता है। जैसे जैसे ध्यान में प्राप्त शांति पहले निश्चलता में और उसके बाद परमानंद की चरम सकारात्मक अवस्था में गहन होती जाती है तब ध्यान करने वाला व्यक्ति आनंद का अनुभव करता है, जो नित्य नवीन है और सर्वसंतुष्टिदायक है। निद्रावस्था में आप विचारों और संवेदनाओं को निष्कि्रय रूप से शांत करते हैं। ध्यान के द्वारा आप विचारों और संवेदनाओं को चेतन रूप से शांत करते हैं। आप पहले शांति की अवस्था का अनुभव करते हैं और आपके चेहरे की मांसपेशियां एक मुस्कान का रूप ले लेती हैं, जो आपके हृदय की शांति को प्रदर्शित करती है। ज्यादातर मुस्कराहटें कोई अच्छा कार्य करने से उत्पन्न अच्छे भावों के कारण अथवा किसी के प्रति सहानुभुति, प्रेम, दयालुता या करूणा के भाव के कारण उत्पन्न होती हैं। मुस्कराने की विधि है अपने हृदय में ईश्वर के प्रेम को भरना। तब आप प्रत्येक व्यक्ति से प्रेम करने लगेंगे और हर क्षण मुस्कराएंगे।
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