- कुंदन लाल सहगल का जन्म जम्मू में हुआ। उनके पिता अमरचंद जम्मू कश्मीर के राजा के तहसीलदार थे। संगीत की ओ सहगल का झुकाव अपनी मां केसर बाई की वजह से हुआ जो बेहद धार्मिक और संगीत प्रेमी महिला थीं।
मां ही सहगल को ऐसी गैदरिंग में लेकर जाती थीं जहां शास्त्रीय संगीत पर आधारित भजन कीर्तनों का आयोजन होता था। यहीं से केएल की संगीत की प्राथमिक शिक्षा हुई, पर उन्होंने संगीत की कोई विधिवत शिक्षा कभी प्राप्त नहीं की।
केवल प्रारंभिक शिक्षा के बाद सहगल ने स्कूल छोड़ दिया और मुरादाबाद रेलवे स्टेशन पर टाइमकीपर की नौकरी कर ली। उसके बाद वे कानपुर आये और यहां चमड़े के कारोबारियों के यहां नौकरी की, यहां गजल की महफिलें लगाने वाले सहगल 'चमड़ा बाबू' के नाम से फेमस हो गए। यहीं एक नामी तवायफ के यहां उन्होंने संगीत सीखा। इसके बाद उन्होंने गाजियाबाद में रैमग्टन कंपनी में सेल्समैन का काम किया। तब उन्हें बीस रुपये मासिक वेतन मिलता था।
- इसके बाद 1940 में वे मुंबई गए और अपने बॉलीवुड करियर की शुरूआत की। यहां उन्हें कई बार रिजेक्शन का भी सामना करना पड़ा। पर बाद में लोग उन्हें संगीत का बादशाह मानने लगे और वो अपने फन के दम पर बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार बने।
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सहगल के दिलदार नेचर और मस्तमौला मिजाज के कई किस्से फेमस हैं। कहते हैं कि केएल सहगल ने एक बड़े संगीत आयोजन में इसलिए गाने से मना कर दिया था क्योंकि उस दिन उन्हें अपने ड्राइवर की बेटी की शादी में गाने के लिए जाना था। एक बार किसी की मदद के लिए उन्होंने बाजार में घूम-घूमकर गाना गाया और चंदा इकट्ठा किया था।
सहगल का एक ही सपना था कि वे एक बहुत बड़े संगीत सम्मेलन में गायें और लोग वाह-वाह करें और सामने उनकी मां बैठी हो और तब वे कहें कि मेरे सम्मान की असली हक़दार मेरी मां हैं। उनका यह सपना साकार भी हुआ।
सहगल को जो शोहरत मिली वो कम ही लोगों को हासिल होती है। उनकी लोकप्रियता का आलम ये रहा है कि अपने दौर के सबसे मशहूर रेडियो चैनल रेडियो सीलोन ने करीब 48 साल तक हर सुबह अपना एक कार्यक्रम सहगल के गानों पर ही आणारित रखा था।
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- सहगल ने 36 फिल्मों में अभिनय किया और 200 से ज्यादा गाने गाए। महज 43 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन इस छोटे से दौर में उन्होंने शोहरत की बुलंदियां हासिल कर ली थीं।
अत्याधिक शराब पीने के कारण 1946 में वह बेहद बीमार हो गए और अपने प्रशंसकों से सेहतमंद होकर लौटने का वादा कर के अपने प्रिय नगर जालंधर चले आए। जहां 18 जनवरी 1947 को लीवर की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
शराब की लत उनको इस हद तक थी कि सहगल ने अपने लगभग सभी गाने शराब के नशे में गाए, केवल एक ही गाना 'जब दिल ही टूट गया उन्होंने बिना शराब पिए गाया था। कहा तो ये भी जाता है कि इसी गाने को सुनते हुए उनके प्राण निकले थे।
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- सहगल और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से जुड़ा एक मजेदार किस्सा बड़ा मशहूर हुआ है। एक बार फ़िल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर मुंबई में हो रहे एक मैच में सहगल को ले आए। इस मैच में हॉफ टाइम तक जब कोई गोल नहीं हुआ तो सहगल ने पृथ्वीराज से कहा कि उन्होंने ध्यानचंद और रूप सिंह का बहुत नाम सुना है उन्हें ताज्जुब है कि कोई आधे समय तक एक गोल भी नहीं कर पाया। ये पता चलने पर रूप सिंह ने पूछा कि क्या वे दोनों जितने गोल मारेंगे उतने गाने वे सुनाएंगे? सहगल राज़ी हो गए। सेकंड हाफ में दोनों ने मिलकर 12 गोल कर दिए, पर फ़ाइनल विसिल बजने से पहले सहगल स्टेडियम छोड़ कर जा चुके थे। अगले दिन सहगल ने अपने स्टूडियो आने के लिए ध्यान चंद के पास अपनी कार भेजी, लेकिन जब वे पहुंचे तो सहगल ने कहा कि अब उनका मूड उखड़ चुका है। ध्यान चंद अपना समय ख़राब होने पर बड़ा दुख हुआ, लेकिन अगले दिन सहगल खुद अपनी कार में वहां पंहुचे जहां टीम ठहरी हुई थी और उन्होंने उनके लिए 14 गाने गाए और हर खिलाड़ी को एक एक घड़ी भी भेंट की।
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