अलगाव कोई खुशी नहीं देता
किसी भी दंपती के जीवन में अलगाव एक कडवा मोड है, जिससे सभी बचना चाहते हैं। भारतीय परिवेश में तलाक के बाद न सिर्फ सामाजिक स्तर पर बल्कि आर्थिक स्तर पर भी बहुत कुछ बदलता है। स्त्रियों पर तो यह फैसला और भारी पडता है। सच्चाई यह है कि तलाक के आंकडे भले ही बढते हुए नजर आते हों, आज भी अलगाव की कगार तक पहुंच चुके कई जोडे तलाक से बचना चाहते
धर्म भी नहीं देते तलाक की सलाह
विश्व में किसी भी धर्म-संस्कृति में तलाक को इतनी आसानी से कबूल नहीं किया गया है। हिंदू संस्कृति में जहां शादी-विवाह को सात जन्मों का रिश्ता माना जाता है वहीं बाइबिल में भी तलाक को बुरा माना गया है। बाइबिल में कहा गया है कि तलाक लेने वाले व्यक्ति से परमेश्वर घृणा करता है। इस्लाम में भी तलाक पर कडी पाबंदी है।
सामाजिक और धार्मिक रूप से तलाक न लेने का इतना दबाव होता है कि स्थिति काफी बिगडऩे पर ही हमारे समाज में तलाक जैसे फैसले लिए जाते है।
मुश्किल फैसला है तलाक
शादी दो व्यक्तियों का साथ रहना भर नहीं होता बल्कि इसमें दो अलग अलग परिवार साथ में जुड़ते और एक नया परिवार बनने की शुरूआत भी होती है जब इसमें पति पत्नी के साथ उनके बचचे शामिल होते हैं। ब्रिअेन जैसे देश में जहां तलाक आम बात मानी जाती है हर चार में से एक दंपती अपने बच्चों के बडा होने का इंतजार कर रहे हैं। एक सर्वे में शामिल 37 प्रतिशत जोडे बच्चों की चिंता के कारण तलाक का फैसला लेने की नहीं सोचते।
खुशियों की गारंटी नहीं है तलाक
डॉ. ब्रैड सॉक्स ने रिलेशनशिप पर अपनी किताब द गुड एनफ टीन में इस बात को काफी विस्तार से लिखा है कि जो पति-पत्नी तलाक का फैसला करते है वे इस कदर अपने ख्वाबों और ख्यालों में खो जाते हैं कि मानने लगते हैं कि तलाक से हर समस्या हल हो जाएगी, रोज-रोज की टकराहट से मुक्ति मिल जाएगी, रिश्तों की खटास दूर होगी तो जिंदगी में सुकून लौट सकेगा और रोजमर्रा के जीवन में तेजी आ सकेगी। पर सच्चाई ये हैं कि ऐसा होता नहीं है। जैसे दांपत्य में खुशियां ही खुशियां हों, यह कल्पना व्यर्थ है, उसी तरह यह विचार भी फिजूल है कि तलाक के बाद जीवन-स्थितियां बहुत सुधर जाएंगी।
बच्चे और आर्थिक कारण भी हैं समस्या
बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि तलाक के बाद बहुत-कुछ खो जाएगा। मसलन आर्थिक स्थिति की चिंता एक बडा कारण है। बच्चों के सामने शर्मिंदगी और उनका प्यार खोने का डर भी तलाक न ले पाने के इन कारणों में से एक है। भारत में तो अब भी महिला की आर्थिक र्निभरता उसे तलाक ना लेने पर मजबूर करती है।
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