1- 1985 में जकार्ता, इंडोनेशिया में हुई एशियाई चैंपियंनशिप में उषा ने 100 मी. स्प्रिंट, 200मी स्प्रिंट., 400मी. स्प्रिंट, 400 मी. बाधा दौड़ और 4x400 रिले में 5 स्वर्ण पदक जीते। किसी भी भारतीय और महिला खिलाड़ी द्वारा किसी एक ही एथलीट प्रतियोगिता में सबसे अधिक पदक जीतने का यह कीर्तिमान है।
2- 1980 में उषा ने पहली बार ओलंपिक्स में हिस्सा लिया हालाकि वो उसमें कुछ कमाल नहीं दिखा सकीं उसी साल उन्होंने कराची अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 4 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
3- 1981 के पुणे अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में उषा को फिर 2 स्वर्ण पदक प्राप्त हुए। इसी साल उन्होंने हिसार अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 1 और लुधियाना अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए।
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4-1982 में विश्व कनिष्ठ प्रतियोगिता, सियोल में उन्हें 1 स्वर्ण और 1 रजत और नई दिल्ली एशियाई खेलों में 2 रजत पदक हासिल हुए।
5- कुवैत में हुई 1983 की एशियाई एथलेटिक चैंपियनशिप में उषा ने 1 स्वर्ण व 1 रजत पदक जीता। इसी साल नई दिल्ली में हुए अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में उनको 2 स्वर्ण पदक मिले थे।
6- उषा को जिंदगी में एक ही अफसोस रहा कि वे 1984 में लांसएंजिलस में हुए ओलंपिक्स में 400 मी. की बाधा दौड़ में 1/100 सेकिंड से गोल्उ मैडल जीतने से चूक गयीं। हालाकि बाद में इसी साल उन्होंने इंगल्वुड संयुक्त राज्य में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक प्राप्त किए। इसके बाद 1984 में ही उन्होंने 8 देशों के अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक प्राप्त किए और टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 400मी बाधा दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।
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7- 1985 में उषा ने चेक गणराज्य में ओलोमोग में विश्व रेलवे खेलों में भाग लिया और 2 स्वर्ण और 2 रजत पदक जीते, उन्हें सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी घोषित किया गया। भारतीय रेल के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय स्त्री या पुरुष को यह सम्मान मिला। ये उनका बेहतरीन साल था, उन्होंने इसके बाद प्राग के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान, लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में कांस्य पदक, ब्रित्स्लावा के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में रजत पदक, पेरिस के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी बाधा दौड़ में 4था स्थान, बुडापेस्ट के विश्व ग्रां प्री खेल में 400मी दौड़ में कांस्य पदक, लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक, ओस्त्रावा के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक, कैनबरा के विश्व कप खेलों में 400मी बाधा दौड़ में 5वाँ स्थान और 400मी में 4था स्थान और जकार्ता की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में 5 स्वर्ण और 1 कांस्य पदक जीता।
8- सियोल में 1986 में हुए एशियाई खेलों में 4 स्वर्ण और 1 रजत पदक जीतने के बाद उन्हें उड़नपरी या स्प्रिंट का खिताब हासिल हुआ। बाद में इसी साल उन्होंने मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 1 स्वर्ण पदक, सिंगापुर के लायंस दौड़ प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण पदक, नई दिल्ली के चार राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 2 स्वर्ण पदक भी मिले।
9- इसके बाद भी उनकी कामयाबी की कहानी चलती रही और 1987 में सिंगापुर की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण, 2 रजत पदक, कुआला लंपुर की मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण पदक, नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक, कलकत्ता दक्षिण एशिया संघ खेलों में 5 स्वर्ण पदक, 1988 में सिंगापुर मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 3 स्वर्ण पदक। नई दिल्ली में ओलंपिक पूर्व दौड़ प्रतियोगिता में 2 स्वर्ण पदक, 1989 में नई दिल्ली की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में 4 स्वर्ण 2 रजत पदक, कलकत्ता में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में 3 स्वर्ण पदक मलेशियाई मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में 4 स्वर्ण पदक, 1990 में बीजिंग एशियाई खेलों में 3 रजत पदक मिले। 1997 में पटियाला के अंतर्राष्ट्रीय अनुमति खेलों में 1 स्वर्ण पदक भी उन्होंने हासिल किया। इसके साथ एशियाई और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में तो सफलता हासिल करती रहीं।
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10- उषा ने अपने करियर में 101 अतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। फिल्हाल वे दक्षिण रेलवे में अधिकारी पद पर कार्यरत हैं। 1985 में उन्हें पद्म श्री व अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1976 में जब केरल राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए एक खेल विद्यालय खोला तो उषा को अपने जिले का प्रतिनिधि चुना था, वे लंबे समय तक इस विद्यालय से जुड़ी रहीं।
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