ऐसे करें कलश की स्थापना
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को साफ सफाई करके शुद्ध करें। फिर साफ धुला पटरा रख कर उस पर लाल कपड़ा बिछायें। कपड़े पर गणेश जी के प्रतीक स्वरूप थोड़े से चावल रखें। इसके बाद मिट्टी, तांबा, पीतल, सोना या चांदी जिस का भी संभव हो उस कलश को मिट्टी से भरें कर और पानी डाल कर उसमें जौ बो दें। अब इस कलश पर रोली से स्वास्तिक और ओम बना कर मौलि से रक्षा सूत्र बांध दें।
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पूजा विधि और सामग्री
इस कलश में सुपारी और सिक्का डाल कर आम या अशोक के पत्ते रखते हैं। अब इस कलश के मुंह को ढंक कर ढक्कन को चावल से भर दें। उसके पास ही एक नारियल को लाल चुनरी से लपेट कर रक्षा सूत्र से बांध कर रखा जाता है। सारी तैयारी के बाद दीपक जला कर कलश की पूजा करें, फूल और मिठाइयां चढ़ायें। नवरात्र भर इस कलश की पूजा करें।
पूजा का महूर्त
प्रतिपदा तिथि क्षय होने के कारण घटस्थापना शुभ मुहूर्त इस प्रकार रखा गया है। 28 मार्च को प्रातः 8:26 से 10:24तक और 29 मार्च को सुबह 06:37 से 07:48 यानि करीब एक घण्टे ग्यारह मिनट। प्रतिपदा तिथि 28/मार्च/2017 को प्रातः 08:26 बजे से प्रारम्भ होगी और 29/मार्च/2017 को प्रातः 05:44 बजे समाप्त हो जायेगी।
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देवी के नौ दिन और रामनवमी
नवरात्र का पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना होती हैं। दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। तीसरे दिन देवी चन्द्रघंटा की पूजा होती हैं। चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे रूप देवी कूष्मांडा की पूजा होती हैं, पांचवा दिन माता स्कंदमाता की पूजा को समर्पित होता है। इन्हें मां पार्वती के नाम से भी जाना जाता हैं। चैत्र नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा का होती हैं। सातवें दिन यानि सप्तमी को मां कालरात्रि की पूजा होती हैं। आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। इस दिन लोग कन्या पूजन भी करते हैं। चैत्र नववरात्र के अंतिम दिन राम नवमी होती है।
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