ए ओ ह्यूम का जन्म:
एलन ऑक्टावियन ह्यूम कांग्रेस के असली संस्थापक रहे हैं। इन्हें ए ओ ह्यूम नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 6 जून को 1829 को इंग्लैंड में हुआ था। यह 1849 में बंगाल सिविल सेवा में चयनित होकर इटावा में तैनात हुए थे।
भारतीयों के चहेते बने:
1857 के प्रथम विद्रोह के समय यह इटावा में कलक्टर पद पर तैनात थे। इस दौरान जंगे आजादी के सिपाहियों से हन्हें काफी खतरा था। इन्हें खुद को बचाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि बाद में ये भारतीयों के चहेते बने थे।
इंडियन नेशनल कांग्रेस:
एलन ऑक्टावियन ह्यूम ने 1882 में अवकाश ग्रहण किया। इसके बाद 27 दिसम्बर 1885 को इन्होंने मुंबई में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जिसमें पूरे देश से भारतीय नेता इसमें शामिल हुए थे। यह सम्मेलन इंडियन नेशनल कांग्रेस के नाम से जाना गया।
22 साल तक महासचिव रहे:
जब कि कांग्रेस को लोग गांधी व नेहरू परिवार की देन समझते हैं। वर्तमान में बड़ी संख्या में लोग राहुल गांधी
और सोनिया गांधी जैसे चेहरों से ही इस पार्टी को पहचानते हैं। जबकि ह्यूम 22 साल तक कांग्रेस पार्टी के महासचिव रहे थे।
लोकतांत्रिक सरकार की कोशिश:
इस पार्टी को बनाने के पीछे का उनका मकसद साफ था। वे भारतीयों को लोकतांत्रिक सरकार देने के तरफदार थे। इतना ही नहीं उन्होंने भारत में ब्रिटिश नीतियों को लेकर सवाल उठाए थे। जिससे उन्हें काफी विरोध भी झेलना पड़ा था।
कांग्रेस को शक की नजरों से:
ह्यूम ने कांग्रेस के सिद्धांतों का प्रचार लेखों और व्याख्यानों के जरिए बड़े स्तर पर किया था। इसकी गूंज इंग्लैंड तक हुई। ऐसे में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार कांग्रेस को शक की नजरों से देखने लगी। उन्हें भारत छोडो जैसे आदेश भी दिए गए थे।
सुधार की विशेष दिशा:
ह्यूम के साथ दादा भाई नौरोजी, सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी, सर फीरोज शाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले, व्योमेशचंद्र बनर्जी, बालगंगाधर तिलक आदि थे। इन्होंने भी ह्यूम के साथ समाज सुधार को एक विशेष दिशा प्रदान की थी।
कांग्रेस को अच्छी नजरों से:
ह्यूम ने लोगों को अंग्रेजी सरकार से ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं व सरकारी नौकरी दिलाने की कोशिश की। इसके लिए कई बार इंग्लैंड भी गए। उनके निरंतर प्रयास से ब्रिटिश सरकार धीरे-धीरे इंडियन नेशनल कांग्रेस को अच्छी नजरों से देखने लगी थी।
ओपन स्कूल की शुरुआत की:
इतना ही नहीं ह्यूम ने ही भारत में ओपन स्कूल शिक्षा की शुरुआत की। इसके अलावा उन्होंने ही यूपी में जुवेनाइल सुधार गृह की शुरुआत भी की थी। पक्षियो को वह बहुत प्यार करते थे। यही वजह है कि उन्हें आर्निथोलाजी कहा जाता है।
दुनिया को अलविदा कहा:
गीता तथा बाइबिल को प्रतिदिन पढ़ने वाले ह्यूम 1894 को हमेशा के लिए इंग्लैंड अपने परिवार के पास वापस चले गए। वहां भी वह कांग्रेस से जुड़े रहे। इसके बाद उन्होंने 31 जुलाई 1912 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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