मानहानि के मामले में जेल भेजे गए आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल जमानत न लेने पर अड़े हुए हैं जबकि क़ानून के जानकारों का कहना है कि यह एक क़ानूनी प्रक्रिया है जिसका हर किसी को पालन करना चाहिए.

प्रशांत भूषण केजरीवाल की इस मांग का समर्थन करते हुए कहते हैं, ''मानहानि जैसे मामले में जब कोई अभियुक्त अदालत के सामने उपस्थित होता है तो उससे जमानत की मांग किया जाना क़ानून के अंतर्गत ज़रूरी नहीं है और वो इसी का विरोध कर रहे हैं.''

इस मुद्दे पर बीबीसी से बात करते हुए मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रशेखर धर्माधिकारी का कहना है कि हमारे यहां मान्यता है कि ज़मानत एक सामान्य दशा है और जेल एक अपवाद होता है.

उन्होंने कहा, ''ज़मानत इसलिए ली जाती है कि जिस पर आरोप लगा है वो अदालत में उपस्थित रहे, लेकिन उस समय निजी मुचलके पर ज़मानत दिया जाना इस बात निर्भर करता है कि व्यक्ति कितना विश्वसनीय है.''

क्या क़ानूनी रूप से सही है केजरीवाल का क़दम?

शिकायत है तो क़ानून बदलिए'

"यदि अदालत को लगता है कि आरोपी की जमानत किसी और देनी चाहिए क्योंकि वह बाद में अदालत में उपस्थित होने से बच सकता है तो ऐसी स्थिति में ज़मानत मांगी जा सकती है और यह हमारे क़ानून में है और क़ानून से ऊपर कोई नहीं है"

-जस्टिस चंद्रशेखर धर्माधिकारी, महाराष्ट्र उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश

उन्होंने कहा, ''इसलिए यदि अदालत को लगता है कि आरोप झेल रहे व्यक्ति की जमानत किसी और देनी चाहिए क्योंकि वह बाद में अदालत में उपस्थित होने से बच सकता है तो ऐसी स्थिति में ज़मानत मांगी जा सकती है और यह हमारे क़ानून में है और क़ानून से ऊपर कोई नहीं है.''

जस्टिस धर्माधिकारी ने कहा, ''अदालत निजी बांड पर भी आरोपियों को छोड़ती है और केजरीवाल के दो साथियों को इसी आधार पर भी छोड़ा, लेकिन इनके मामले में अदालत को लगा कि इसी को वो आंदोलन का हिस्सा बना लेंगे और कल इसी आधार पर अदालत में उपस्थिति से छूट लेने लगेंगे. ये सारी चीजें इससे अलग हों और वादी को भी निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिले. इसीलिए अदालत ने शायद यह फ़ैसला लिया है.''

उन्होंने कहा,''मुझे नहीं लगता कि क़ानून के राज में किसी के साथ विशेष बर्ताव होना चाहिए, नहीं तो क़ानून के सर्वोपरि होने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.''

उन्होंने कहा, ''इसलिए यदि क़ानूनी प्रक्रिया पर आपको सवाल उठाना है तो आप क़ानून को बदल लीजिए. जो आज क़ानून अस्तित्व में है उसे बदल लेने में मुझे कोई हर्ज नहीं है. क़ानून की प्रक्रिया के तहत इस आदेश को भी चुनौती दे सकते हैं, इसमें भी कोई हर्ज नहीं है.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के वकील और आम आदमी पार्टी के प्रमुख सदस्य प्रशांत भूषण का विचार इस मामले में अलग है.

'क़ानून बदलना होगा'

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि केजरीवाल एक सैद्धांतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. सवाल है कि हर आपराधिक मामले में, चाहे वो धारा 144 के उल्लंघन का मामला हो या मानहानि का हो, जब किसी को समन भेजा जाता है तो उसको गिरफ़्तार किया जाना ज़रूरी नहीं होता है.

उन्होंने कहा, ''यदि आप हर ऐसे मामले में जमानत और निजी मुचलका मांगते रहेंगे तो आम आदमी इसमें पिस जाएगा. इसीलिए जेलों में हजारों लोग सड़ रहे हैं, क्योंकि वे जमानत नहीं दे पाते.''

क्या क़ानूनी रूप से सही है केजरीवाल का क़दम?

आम आदमी पार्टी योगेंद्र द्वारा पांच हजार के निजी मुचलका देकर रिहा होने के सवाल पर प्रशांत भूषण ने कहा कि इस मुद्दे को उठाने के लिए एक मामला ही काफ़ी है और अरविंद केजरीवाल ने यह मुद्दा उठा लिया है.

उन्होंने कहा, ''दूसरी बात यह है कि योगेंद्र यादव का मामला इससे जुदा था. उनको तो पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था और इस वजह से अदालत ने कहा कि जमानत का मुचलका भरना पड़ेगा.''

उन्होंने कहा, ''एक मुकदमे में इसे मुद्दा बनाकर इसको तय कराना ज़रूरी है. यह देश के करोड़ों आम आदमियों के लिए ज़रूरी है.''

प्रशांत भूषण ने कहा, ''अरविंद केजरीवाल अदालती प्रक्रिया के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे मामले में, जिसमें एक प्रमुख नेता के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है और जनहित में उठाया है.''

'प्रक्रिया ग़लत'

उन्होंने कहा, ''ये जो क़ानूनी प्रक्रिया चलन में है, यह पूरी तरह ग़लत है. क़ानून यह कहीं नहीं कहता कि मानहानि के मामले में नोटिस ज़ारी होने पर जब आरोपी अदालत में उपस्थित हो तो उससे जमानत लेने के मजबूर किया जाए और कहा जाए कि यदि वो जमानत नहीं लेता है तो उसे जेल भेज दिया जाएगा.''

क्या क़ानूनी रूप से सही है केजरीवाल का क़दम?

प्रशांत भूषण का कहना है कि छोटे छोटे मामलों में जमानत मांगने की प्रक्रिया से ही हजारों लोग जेलों में सड़ रहे हैं.

तिहाड़ जेल के सामने धरने पर बैठने को सही ठहराते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि कार्यकर्ता अपने नेता के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए वहां गए थे लेकिन पुलिस ने बल प्रयोग कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया, जबकि क़ानून का कोई उल्लंघन नहीं हुआ था.

उन्होंने कहा, ''इसके ख़िलाफ़ वो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे और इस क़ानून को बदलवाएंगे और तब तक केजरीवाल जेल में ही रहेंगे.''

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