लीबिया में अपना प्रभुत्व लगभग खो चुके गद्दाफी और उसके परिवार नें अब त्रिपोली में शरण ले रखी है. लम्बे समय तक लीबिया पर शासन करने वाले इस परिवार ने एक समय इंडिया की दुखती रग माने जाने वाले काश्मीर मुद्दे पर भी अपनी दखल दी थी. काश्मीर में हुए ओपीनियन पोल्स में गद्दाफी के पुत्र सैफ-अल-इस्लाम गद्दाफी ने अपने कथित चैरिटी फाउन्डेशन की ओर से फंडिंग की थी.

क्रान्तिकारी से आतंकवादी तक के अपने इस सफर में गद्दाफी परिवार ने इंटरनेशनल कम्युनिटी में अपनी बेहद अलग छाप छोड़ी. एक समय जब कर्नल गद्दाफी ने लीबिया में तख्तापलट कर देश को तानाशाही से निजात दिलाई तो वे पूरी दुनिया के हीरो बन गये मगर बाद में उनके कई कामों ने उनको विलेन बना दिया. गद्दाफी के पुत्र सैफ अल इस्लाम गद्दाफी शासनकाल तक अपने पिता के बाद लीबिया के दूसरे सबसे पावरफुल परसन के तौर पर पहचाने जाते रहे.

सैफ अल इस्लाम ने लीबिया फंडेड एक चैरिटी आर्गनाइजेशन Gadhafi International Charity and Development Foundation की स्थापना की और इसके जरिये कई इंटरनेशनल ईश्यूज में अपनी दखल दी. इस आर्गनाइजेशन ने कई इंटरनेशनल कान्फ्लिक्ट्स पर स्टडी कराई और कान्ट्रोवर्सियल आउटकम निकाले. 1990 के दौर की फिलीपीन्स पीस टाक हो या भारत पाकिस्तान के बीच का काश्मीर कान्फ्लिक्ट, जूनियर गद्दाफी ने हर जगह अपनी दखलंदाजी जरूर की. गद्दाफी ने अपने आर्गनाइजेशन के जरिये लंदन के एक थिंक टैंक को काश्मीर में ओपीनियन पोल कराने के लिये फंड किया. इससे इंडिया में थोड़ा बहुत बवाल भी हुआ और लीबिया के साथ इंडिया के रिलेशन्श भी थोड़े खराब हुए.

लीबिया और इंडिया के रिलेशन 70 के दशक में उस समय काफी बिगड़ गये थे जब लीबिया ने पाकिस्तान को न्यूक्लियर वैपन्स बनाने में मदद की थी. हालाकि हाल के सालों में ये सम्बन्ध सामान्य हो गये थे. इंडिया ने लीबिया में चल रहे अनरेस्ट से खुद को दूर ही रखा है. अब देखना होगा कि तख्तापलट के बाद इंडिया और लीबिया के रिलेशन्स में क्या फर्क पड़ता है.

 

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