कहानी:
ये फ़िल्म तो नारी सम्मान की धज्जियां उड़ाने के लिए बनाई गई है। फ़िल्म इंडस्ट्री की पृष्ठभूमि में कोम्प्रोमाईज़ के चलन और स्ट्रगलर दुनिया की कहानी सुनाती ये फ़िल्म एक घटिया और बेहद शर्मनाक फ़िल्म है। फ़िल्म भद्दी है, किसी सी ग्रेड फ़िल्म कम नही है। मधुर भडांरकार की फ़ैशन और हीरोइन की स्क्रिप्ट के सीन निकाल निकाल कर ये फ़िल्म बनाई गई है। कहानी बताने की ज़रूरत नहीं है।
समीक्षा:
याद है वो समय जब उड़ता पंजाब को देश और समाज के लिए घातक फ़िल्म बात कर पहलाज निलहानी ने विवाद छेड़ा था, ये फ़िल्म औरतों का ऑब्जेक्टिफिकेशन करती है और इस लेवल तक घटिया तरीके से की शर्म से आपकी नज़रें झुक जाएंगी। ये फ़िल्म निलहानी के दोगलेपन का सबूत है। फ़िल्म के संवाद और सीन बेहद ऑब्जेक्शनबल हैं। फ़िल्म का स्क्रीनप्ले एक दम कनविनिएंट है और इस बात को साबित करने के लिए ही लिखा गया है कि फ़िल्म इंडिस्ट्री में टैलेंट नहीं बस बदन बेचना ही एक मात्र ट्रेंड है। फ़िल्म इंडस्ट्री के कलाकारों को इस फ़िल्म से खासी परेशानी होनी चाहिये। कोम्प्रोमाईज़ की थीम को इतना हाई लाईट किया गया है कि कोई माँ बाप अपने बच्चों को फिल्मी कलाकार बनाने से हिचकें। कुल मिलाकर थीम वेहद रिग्रेसिव है और फ़िल्म इंडस्ट्री को बदनाम करने के हिसाब से ही बनाई गई है। साफ दिखता है कि संस्कारी निलहानी इंडस्ट्री से बदला ले रहे हैं। फ़िल्म के टेक्निकल डिपार्टमेंट भी बड़े निम्न दर्जे के हैं, खासकर फ़िल्म की एडिटिंग और म्यूजिक डिपार्टमेंट।
अदाकारी:
रायलष्मी की डेब्यू फिल्म उनकी सबसे खराब चॉइस है। इस फ़िल्म से डेब्यू करने से बेहतर है कि वो डेब्यू करती ही नहीं। फ़िल्म के बाकी सभी किरदार इतने लाउड और खराब है कि पूछिये ही मत
कुल मिलाकर ये फ़िल्म बेहद एकतरफा तरीके से एक ऐसी कहानी सुनाती है जो सुनाई नहीं जानी चाहिए। फ़िल्म इंडस्ट्री में कोम्प्रोमाईज़ होता है और यही होता है और इसके अलावा कुछ नाही होता, ये सच नहीं है। यहां मेहनत भी लगती और टैलेंट भी ज़रूरी है, पर शायद निलहानी और दीपक शिवदासानी की आंखों से ये दुनिया ऐसी ही दिखती होगी। मेरी राय मानिए तो कोई ज़रूरत नाही है 13 साल पहले की सोच वाली ये फ़िल्म देखने की।
रेटिंग : कोई स्टार नहीं
Yohaann Bhargava
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