राष्ट्रपति के बावजूद जिया सादा जीवन
82 साल के उरुग्वे के पूर्व राष्ट्रपति जोस मुजिका का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है। वह ऐसे राजनेता थे जिन्होंने विलासता छोड़ सादा जीवन जीने पर बल दिया। यही वजह है कि राष्ट्रपति रहते हुए भी उन्होंने एक आम नागरिक की तरह गुजर-बसर की। दुनिया के सबसे गरीब राजनेताओं में भी उनका नाम शुमार है। हो भी क्यों न, आखिर जिस इंसान ने अपने देश को तरक्की के राह पर पहुंचा दिया उसने खुद के बारे में कभी सोचा ही नहीं।
उरुग्वे के बहुचर्चित राष्ट्रपति
मुजिका ने 1960 और 1970 के दशक में उरूग्वे के टुपामारोस गुरिल्ला के सदस्य के रूप में बिताए। यह क्यूबा की क्रांति से प्रेरित एक वामपंथी सशस्त्र संगठन था। उन्हें छह बार गोली लगी और उन्होंने 14 साल जेल में बिताए। परिणाम यह हुआ कि देश से तानाशाही खत्म हुई और लोकतंत्र की जीत हुई। धीरे-धीरे मुजिका उरुग्वे की राजनीति में जुड़ते गए। और 2010 में उन्होंने उरुग्वे के 40वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और 2015 में उन्होंने देश को शिखर तक पहुंचाकर संन्यास ले लिया।
2 कमरे के मकान में रहते हैं
मुजिका को दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्रपति माना जाता है। उन्होंने हमेशा फकीरों जैसा जीवन जिया। जोस राष्ट्रपति भवन के बजाय अपने 2 कमरे के मकान में रहते थे और सुरक्षा के नाम पर बस दो पुलिसकर्मियों की सेवाएं लेते थे। वे आम लोगों की तरह खुद कुएं से पानी भरते हैं और अपने कपड़े भी धोते हैं। मुजिका पत्नी के साथ मिलकर फूलों की खेती करते हैं, ताकि कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सके। वह अपने पालतू कुत्ते से बहुत प्यार करते थे।
खुद करते थे खेती
जोस मुजिका ने अपना जीवनयापन के लिए हमेशा खेती का सहारा किया। वह मेनहत से पैसा कमाने पर विश्वास रखते थे। खेती के लिए ट्रैक्टर भी वे खुद ही चलाते हैं। ट्रैक्टर खराब हो जाए, तो खुद ही मेकैनिक की तरह ठीक भी करते हैं। मुजिका कोई नौकर-चाकर भी नहीं रखते। अपनी पुरानी फॉक्सवैगन बीटल को खुद ड्राइव कर ऑफिस जाते थे। हालांकि, ऑफिस जाते समय वह कोट-पैंट पहनते थे, लेकिन घर पर बेहद सामान्य कपड़ों में रहते थे।
90 प्रतिशत सैलरी कर देते थे दान
जोस मुजिका ने कभी भी पूरी सैलरी नहीं ली। वह अपनी तनख्वाह का 90 प्रतिशत हिस्सा दान कर देते थे। एक देश के राष्ट्रपति को जो भी सुविधाएं मिलनी चाहिए, मुजिका को भी वो सभी सुविधाएं दी गईं, लेकिन उन्होंने लेने से इंकार कर दिया। वेतन के तौर पर उन्हें हर महीने 13300 डॉलर मिलते थे, जिसमें से 12000 डॉलर वह गरीबों को दान दे देते थे। बाकी बचे 1300 डॉलर में से 775 डॉलर छोटे कारोबारियों को भी देते थे।
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