मुंबई (स्मिता श्रीवास्तव)। 15 अगस्त को रिलीज जॉन अब्राहम की फिल्म 'बटला हाउस' दिल्ली के चर्चित बाटला कांड से प्रेरित है। निखिल आडवाणी निर्देशित इस फिल्म में वह पुलिस अधिकारी की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
सवाल : बॉलीवुड का झुकाव रियलिस्टिक और बायोपिक फिल्मों की ओर बढ़ रहा है। उसकी क्या वजहें मानते हैं?
जवाब : मुझे लगता है कि हम जिन असल घटनाओं पर फिल्में बना रहे हैं वे ज्यादा रोचक होती हैं। 'बाटला हाउस' उस मामले की पड़ताल करने वाले पुलिस अधिकारी संजीव कुमार यादव की निजी जिदंगी की दास्तान है। मुझे उनकी कहानी पर्दे पर दिखाने का मौका बेहतरीन मौका मिला है। मानता हूं कि सिनेमा का काम एंटरटेनमेंट का है। हम डॉक्यमेंट्री नहीं बना रहे हैं। अगर हम रियल कहानी को मनोरंजक तरीके से पेश करें तो ऑडियंस जागरुक भी होती है। फिल्म के लेखक रितेश शाह जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने चार साल रिसर्च की थी। उन्होंने निर्देशक निखिल आडवाणी को स्कि्रप्ट दी। निखिल ने मुझे बताया। मुझे लगा कि कहानी सभी के साथ साझा करनी चाहिए। 'बाटला हाउस' प्रकरण को लेकर फिल्म में तीन वजर्न दिखाए गए हैं..हमने पुलिस, गवाह और आरोपित पक्ष की ओर इन्हें दिखाया है। कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला भी इसमें शामिल है। अंत को ऐसे बनाया कि फिल्म देखने के बाद उस पर चर्चा हो। वह फिल्म में दिखाए गए तथ्यों को लेकर अपनी सहमति या असहमति व्यक्त करें। अगर किसी फिल्मस के बाद लोग उस विषय पर चर्चा करें तो यह अच्छी् बात है।
सवाल : संजीव यादव से मुलाकात किरदार को निभाने में कितनी मददगार रही?
जवाब : मेरे लिए उन्हें समझना बहुत जरूरी था। तभी उस किरदार को सही तरीके से निभा सकता था। पुलिस को लेकर लोगों का एक नजरिया होता है कि उनका दबंग स्टाइल होगा। हाथों में पिस्टल होगी। हकीकत और उनका निजी पक्ष इससे इतर होता है पुलिसकर्मी भी इंसान होते हैं। उनके दिमाग में बहुत कुछ चलता रहता है। मैं उनसे मिला। वह शांत और शर्मीले इंसान हैं। घटना के दौरान वाकई उन्होंने पत्नी को ब्यूटी पार्लर जाने के लिए छोड़ा था। दोनों के बीच अलगाव की नौबत आ गई थी। उन्हें भी पता नहीं था कि उनकी जिंदगी में अगले पल क्या घटित होगा। उन्हें अब तक नौ गैलेंट्री अवार्ड मिल चुके हैं। उन्हें अंदाजा नहीं था कि चंद पलों बाद लोग उन्हें हत्यारा बुलाएंगे। उन्होंने काफी कुछ सहा। वह आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगे थे। उनकी पत्नी न्यूज रीडर थीं। उन्हें खबर पढ़ते हुए अपने ही पति के खिलाफ बोलना था कि यह फर्जी एनकाउंटर है। आप उनकी मनोदशा का अंदाजा लगा सकते हैं। यह सिर्फ एनकाउंटर की नहीं, बल्कि मानवीय कहानी है।
सवाल : निखिल आडवाणी का कहना है कि आप देशभक्त हैं, लेकिल प्रगतिशील सोच रखते हैं..
जवाब : बिल्कुल। देशभक्ति और अंधराष्ट्रभक्ति में बहुत फर्क है। मैं देशभक्त हूं क्योंकि अपने देश से बहुत प्यार करता हूं। साथ ही अपने देश को लेकर आलोचनात्मक भी हूं। यह बेहद जरूरी है। वहीं अंधराष्ट्रभक्त भी देश को बहुत प्यार करता है, लेकिन आलोचनात्मक रवैया नहीं रखता। देश से जुड़ी हर चीज को स्वीकार लेता है। मैं अंधराष्ट्रभक्त की श्रेणी में नहीं आता। देश के प्रति मेरा प्यार मेरी फिल्मों में भी झलकता है। मेरा मानना है कि प्रगतिशील सोच रखना और देश को समझना बेहद जरूरी है। सिर्फ ट्वीट करने से कुछ नहीं होता है। आपको रचनात्मक आलोचक होना चाहिए। मुझे लगता हे कि उससे देश को भी फायदा होगा।'
सवाल : जिस्म' से लेकर 'बाटला हाउस' तक हिंदी सिनेमा में कई परिवर्तन आए। आपने उन परिवर्तनों के साथ सामंजस्य कैसे बिठाया?
जवाब : मेरे लिए वह बदलाव काफी आसान था क्योंकि मैं निर्माता बन गया। मैं निर्माता इसलिए भी बना क्योंकि उस समय मुझे बतौर कलाकार अच्छी स्कि्रप्ट ऑफर नहीं हो रही थीं। उस दौरान प्रदर्शित हो रही फिल्मों से भी खुशी नहीं हो रही थी। मैंने अपनी पसंदीदा कहानियों को कहना आरंभ किया। मेरी कहानियां काफी समकालीन रहीं। वह बदलाव की बात करती हैं। मैं खुद को ट्रेंड सेटर भी मानता हूं। मेरे प्रोडक्शन हाउस तले बनी फिल्म 'विकी डोनर' आई थी। उसके बाद 'शुभ मंगल सावधान' और 'बधाई हो' आई थी। इसी तरह 'मद्रास कैफे' के बाद 'आर्टिकल 15' जैसी फिल्में आई। मेरी परमाणु के बाद 'मिशन मंगल' आ रही है।
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