जीतेंद्र कहते हैं, "मैं अपने दोस्त राजेश खन्ना के पास गया. तब वो थिएटर किया करते थे. उन्होंने मुझे तैयारी करवाई और मैं 'गीत गाया पत्थरों ने' के लिए चुना गया."
इस फ़िल्म में जीतेंद्र की भूमिका को बहुत सराहा गया.
अपने 75वें जन्मदिन के मौक़े पर बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने बताया, "घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसलिए मैं पिता जी के साथ आर्टिफिशियल ज्वेलरी के काम में हाथ बंटाने लगा."
ऐसे ही एक दिन शांताराम जी के सेट पर मैंने एक आदमी से कहा कि मैं शूटिंग देखना चाहता हूं. उस आदमी ने कहा कि शूटिंग देखने के लिए काम करना होगा. इसके बाद उसने मुझे जूनियर आर्टिस्ट का रोल दिलवा दिया.
वो आगे कहते हैं, ''मैंने जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर बहुत मेहनत की और एक दिन हिम्मत कर शांताराम जी से मिल कर उनसे फ़िल्म में काम करने का एक मौक़ा मांग लिया.''
'जम्पिंग जैक' के नाम से पहचाने जाने वाले अभिनेता ने बीबीसी से ज़िंदगी के कुछ दूसरे पहलुओं को भी बांटा.
उन्होंने लगभग 250 से अधिक फ़िल्मों में काम किया है जिनमें कई सुपरहिट रही हैं. अभिनेता के साथ वो निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी काम कर चुके हैं.
लगातार फ़िल्में करने के बारे में वो कहते हैं, ''मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत ग़रीबी देखी थी. काफ़ी असुरक्षित और मजबूर था. इसलिए हर फ़िल्म के लिए हामी भर दिया करता था.''
वो कहते हैं कि जब निर्माता उनके पास आता था, तो उनसे फ़िल्म में अपने किरदार के बारे में पूछने के बजाय, वो उससे सीधे हस्ताक्षर करने की जगह पूछते थे.
उन्हें अपनी फ़िल्मों के सफ़ल होने की ख़ुशी है लेकिन दुख है कि इस वजह से वो बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाए.
वो बताते हैं कि उन्होंने 40 सालों तक लगातार काम किया, दिन के 14 -14 घंटे.
15 साल पहले उन्होंने अभिनय के सफर को रोकने का फैसला किया, लेकिन वो हंसते हुए कहते हैं कि क़िस्मत देखिए मेरे दोनों बच्चे इस लाइन में हैं. उन्हें दोनों पर गर्व है.
जितेन्द्र की बेटी एकता कपूर को 'क़्वीन ऑफ़ टेलीविज़न' कहा जाता है. हालांकि वो कहते हैं कि उन्होंने ख़ुद इसकी कल्पना नहीं की थी कि एकता कपूर कभी इतनी कामयाब होंगी.
वो बताते हैं, ''मैं जिस एकता को जनता था, वो खाने की शौकीन हुआ करती थी. दिन रात उसे खाना चाहिए, यहां तक कि वो अपने भाई का भी खाना खा लिया करता थी.''
एकता चॉकलेट की शौक़ीन हुआ करती थीं. और पिता जीतेंद्र उनके करियर को लेकर काफ़ी चिंता रहते थे.
लेकिन आज उसकी सफ़लता और मेहनत ने मुझे आश्चर्य में डाल दिया है. आज वो रिंग मास्टर हैं और मुझे उसपर गर्व है.
हंसते हुए कहते हैं कि अब तो उससे बात करने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है, क्योंकि उसका दिमाग़ बहुत तेज़ चलता है. लेकिन मुझे कोई सुझाव चाहिए होता है, तो उससे ज़रूर बात करता हूं. वो सही फ़ैसले लेती है.
अपने फ़िल्मी करियर से उन्हें कोई शिक़ायत नहीं है. वो कहते हैं,"मैं एक तोता राम हूं. मुझे जिसने जैसा कहा मैंने वैसे काम किया."
वो खुद को एक संतुष्ट अभिनेता बताते हैं और कहते हैं कि मैं सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देता था, दूसरों के काम से मैंने कभी मतलब नहीं रखा.
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