रांची(ब्यूरो)। हर माता-पिता अपने बच्चे को एक बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं। प्रत्येक पेरेंट अपने बच्चों को कामयाब देखना चाहते हैं। उसे अच्छी शिक्षा देना, जीवन में अच्छी बातें सिखाना, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना जैसी बातें बच्चों को हर दिन समझाते और बताते हैं। बावजूद इसके कुछ बच्चे गलत राह पर निकल जाते हैं। उनकी संगत, दोस्ती-यारी अच्छी नहीं होती है। गलत संगत में पड़कर वे भी गलत राह पर चल देते हैं। अपने पेरेंट्स से बाते छिपाने लगते हैं। कहीं आपका लाडला भी ऐसे ही किसी गलत संगत में तो नहीं पड़ गया, इस पर नजर रखना हर माता-पिता का कर्तव्य होता है। यदि पेरेंट्स अपने बच्चों की निगरानी सही नहीं करेंगे तो संभव है बच्चे में गलत आदतें हावी होने लगे। ऐसे बच्चे एक दिन मां-बाप से बात-बात पर बहस करने लगते हैं। झूठ बोलना शुरू कर देते हैं। पेरेंट्स को पलट कर जवाब देते हैं। ये सभी समस्याएं टीनएज के लड़कों में अधिक देखने को मिलती हैं। 10 से लेकर 12 साल की उम्र वाले बच्चे पर पहले से ही ध्यान देना जरूरी हो जाता है, ताकि वे टीनएज में पहुंचकर बुरी संगत के कारण बिगड़ ना जाएं। कई बार ऐसा देखा गया है कि मां-बाप अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के लिए पढऩे भेजते हैं, और आपका लाडला गलत संगत में पड़कर नशे का आदी हो जाता है।

स्कूली छात्रों व युवाओं के बीच गांजा

राजधानी में नशे का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। नशे के सौदागर राजधानी के स्कूलों-कॉलेजों में पढऩेवाले कम उम्र के बच्चों को टारगेट करते हंै। ताकि टीनएज बच्चे नशे के आदी हों और उनका कारोबार फले-फूले। स्कूली छात्रों और युवाओं के बीच गांजा, ब्राउन शुगर और हेरोइन जैसे मादक पदार्थ बेचे जा रहे हैं। इस कारोबार में पुरुष तस्करों के अलावा महिलाएं भी शामिल हैं। तस्कर युवाओं को लुभाने के लिए महिला मॉडल तक को इस धंधे में उतार रहे हैं। ये लोग स्कूल-कॉलेज में पढऩे वाले यूथ से दोस्ती करते हैं। उन्हें नशे की आदत लगाते हैं।

स्टूडेंट्स बन रहे सॉफ्ट टारगेट

नशे के कारोबारियों के लिए स्कूल और कॉलेज छात्र सॉफ्ट टारगेट होते हैं। नशे के सौदागर छात्रों को ही नशीले पदार्थों की बिक्री के लिए एजेंट बना देते है। इन छात्रों के हाथों ही नशीले पदार्थ बेचवाए जाते हैं। इसके लिए उन्हें नशे की लत में डालकर उन्हें कमिशन का लालच देकर झांसे में लिया जाता है। संत जेवियर्स कॉलेज, मारवाड़ी कॉलेज, गोस्सनर कॉलेज, रांची कॉलेज, डोरंडा कॉलेज, सरस्वती शिशु मंदिर धुर्वा, डीपीएस, संत पॉल्स स्कूलों के आसपास गांजा सहित अन्य नशीले पदार्थों की खूब बिक्री हो रही है।

सिगरेट-गांजा समेत अन्य नशा

इन दिनों सिगरेट में भरकर गांजा की बिक्री हो रही है। इसके अलावा कागज में मोड़कर ब्राउन शुगर की भी खूब बिक्री हो रही है। सिटी में स्विच के नाम पर गांजा बेचा जाता है। गांजा के अलावा सिगरेट, गुटखा तो यूथ के लिए फैशन हंक बन चुका है। हर यूवा स्मोक करना और गुटखा चबाने को अपना स्टेटस समझता है। यही बाद में नशे की लत ले लेता है। सिगरेट गांजा के अलावा फोर्टबीन और नाइकोजोशिन इंंजेक्शेन, नाइट्रोजन-10 फ्रेक्सिबोन स्पासमो और ट्राइका टेबलेट, कॉरेक्स, कोडीस्टार, आरयू-टफ, लीरिक्स व बायोरेक्स कफ सीरप आदि का नशा भी यूथ कर रहे हैं।

पेरेंट्स रखें विशेष ख्याल

रिनपास के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ विनोद ने बताया कि 3 महीने में 200 से अधिक युवा खासकर ब्राउन शुगर और अफीम की नशे की लत में यहां पहुंचे हैं। यह संख्या पिछले हफ्ते से और भी ज्यादा होती जा रही है। इस एक हफ्ते में हर दिन 8 से 10 युवा ब्राउन शुगर की लत के कारण ओपीडी में आ रहे हैं। वहीं, सीआईपी के साइकियाट्रिस्ट डॉ बलबीर ने बताया कि नशे की लत में यहां पहुंचने वाले किशोर या युवाओं को संभालना मुश्किल हो जाता है। डॉ बलबीर ने बताया कि बच्चे अपने आसपास जो भी देखते हैं, सुनते हैं, उसे ही फॉलो करने लगते हैं। स्कूल, पार्क, ट्यूशन आदि जगहों पर वे अपने दोस्तों को जैसा करते और बोलते देखते हैं, उसे ही फॉलो करने लगते हैं। खासकर, यदि संगत सही ना हो तो बच्चों के बिगडऩे की आशंका अधिक रहती है। ऐसे में बेहद जरूरी है कि पेरेंट्स शुरू से ही उनकी बातों, हावभाव पर ध्यान दें ताकि उन्हें बिगडऩे से बचाया जा सके। कुछ बच्चे किसी भी फेवरिट चीज को लेने के लिए जिद पर उतर जाते हैं। इसके लिए वे पेरेंट्स से चिल्लाकर बहस करने लगते हैं। खाना तक नहीं खाते। उन्हें हर हाल में वे चीज चाहिए होती है। 8-10 साल की उम्र के बच्चे में ये आदत अधिक देखने को मिलती है। पेरेंट्स को बच्चे की इस आदत को प्यार से समझाते हुए डील करने की जरूरत है। स्कूल कॉलेज में बच्चों की एक्टिविटीज पर नजर रखनी चाहिए। समय-समय पर खुद से उनकी काउंसलिंग करते रहें।