रांची (ब्यूरो)। सिटी में कुछ महीनों पहले तक नशा को लेकर जोर-शोर से अभियान चलाया जा रहा था। लेकिन हाल के कुछ दिनों से अभियान सुस्त पड़ गया है। अभियान तो सुस्त पड़ गया लेकिन वहीं दूसरी ओर नशेड़ी और नशे का कारोबार करने वाले फिर से एक्टिव हो चुके हैं। नशे के लिए ब्राउन शुगर, अफीम और गांजा सभी का इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन इन सबसे भी ज्यादा इन दिनों नशीली दवाएं और नशीले इंजेक्शन का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजधानी रांची में नशे का कारोबार हो रहा है, बल्कि झारखंड के सभी जिलों में यही स्थिति है। नशे के लिए गांजा और अफीम से ज्यादा दवाइयों का इस्तेमाल हो रहा है। सीआईडी के आंकड़ों के मुताबिक, एक दर्जन से अधिक दवाइयों का इस्तेमाल नशे के लिए किया जा रहा है। इसमें टैबलेट से लेकर कफ सिरप का और कई तरह के इंजेक्शन का इस्तेमाल शामिल है। अमूमन इन दवाओं को डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन के बगैर बेचा नहीं जा सकता। लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। धड़ल्ले से नशीली दवाओं की खरीद-बिक्री और इसका इस्तेमाल हो रहा है।

ड्रग्स लेने वाले ज्यादा

ड्रग कंट्रोलर ऋतु सहाय ने बताया कि झारखंड की राजधानी रांची में भी ड्रग्स लेने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। अब तक रेड में कई बार दवाएं टैबलेट, कफ सिरप और इंजेक्शन बरामद हो चुके हैं। इसका सेवन करने के बाद कोई भी व्यक्ति नकारात्मक ही नहीं सोचता, बल्कि उसका स्वभाव भी उग्र हो जाता है और वह कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। नशे के इस्तेमाल के लिए तस्कर बाहरी राज्यों से दवाइयों को मंगवाते हैं। खासकर हिमाचल प्रदेश के सोलन से मंगायी गयी दवाओं (कोडीन फास्फेट, ऐन्टेन, ट्रामाडोल पेंटाजोसिन) का झारखंड में कोई सप्लायर नहीं है। यहां तक कि कोई स्टॉकिस्ट भी नहीं है। यह भी पता चला है कि इन ड्रग्स का अगर कोई लगातार 10 दिन सेवन कर ले, तो इसका एडिक्ट यानी आदी हो जाता है। पिछले एक साल के भीतर रांची के सुखदेव नगर, पंडरा और रातू इलाके से ऐसी दवाइयों की बड़ी खेप पकड़ी गई है।

नशे के लिए दवाइयों का इस्तेमाल

रांची के सिटी एसपी राजकुमार मेहता ने बताया कि सीनियर एसपी चंदन कुमार सिन्हा के नेतृत्व में राजधानी रांची में लगातार नशा के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। अब तक इससे जुड़े सौ से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है। लेकिन यह भी सच है कि सिटी में पूरी तरह नशे के कारोबार पर अंकुश नहीं लगा है। इसमें आम नागरिकों की भी सहभागिता बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह सही है कि मादक पदार्थों की तुलना में दवाइयों का इस्तेमाल नशे के लिए ज्यादा हो रहा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह इनका सस्ता होना भी है। राजधानी में अलग-अलग थानों में दर्ज मामले इस बात की तस्दीक करते हैं कि बड़े पैमाने पर दवाइयों का इस्तेमाल नशे के लिए किया जा रहा है। पूरे मामले को लेकर ड्रग्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ पुलिस मिलकर लगातार काम कर रही है और हाल के दिनों में कई बड़ी खेप पुलिस ने बरामद भी की है और दोषी लोगों को जेल भेजा है। यह आगे भी जारी रहेगा।

हेल्पलाइन नंबर पर दें सूचना

नशीले पदार्थों की खरीद बिक्री और इसकी रोकथाम के लिए पुलिस ने शहर वासियों से भी सहयोग की अपील की है। एसएसपी ने कहा कि सहभागिता से ही इस बीमारी से लड़ा जा सकता है। नशा मुक्त समाज के निर्माण में आम जनता का सहयोग बेहद जरूरी है। कहीं भी किसी भी प्रकार के नशा से जुड़ी जानकारी प्राप्त होने पर हेल्पलाइन नंबर 9153886238 पर जानकारी दी जा सकती है।

क्या कहते हैं मनोचिकित्सक

रांची के कांके स्थित रिनपास के वरीय मनोचिकित्सक डॉ सिद्धार्थ सिन्हा भी मानते हैं कि हाल के दिनों में सूखा नशा, नशीली दवा और इंजेक्शन का प्रचलन काफी बढ़ा है। रांची जैसे शहरों में 5 साल पूर्व तक गांजा का प्रचलन था, लेकिन अब ब्राउन शुगर, ब्लैक स्टोन, कोकीन जैसे मादक पदार्थ बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। डॉक्टर सिद्धार्थ सिन्हा के अनुसार कोई भी युवा अगर सूखे नशा (ब्राउन शुगर) के आदि हो चुके हैं तो उसे हर दिन अपने शरीर में नशे की पूर्ति करने के लिए ढाई हजार रुपये के ब्राउन शुगर की जरूरत होती है। इतना नशा अगर उसे न मिले तो वह पागल जैसे होने की स्थिति में आ जाएगा। इसलिए युवा नशे की खुराक पूरी करने के लिए चोरी, छिनतई समेत अन्य कोई भी अपराध करने से पीछे नहीं हट रहे हैं।