रांची(ब्यूरो)। बिहार से झारखंड को अलग हुए 24 साल पूरे होने वाले हैं। लेकिन राजधानी रांची में रहने वाले बहुत सारे लोगों को अब भी स्वच्छ पानी तक नसीब नहीं है। कई लोग तो ऐसे हैं जिनको अभी तक सप्लाई वाला पानी भी नहीं मिला है। जबकि सरकार शहर के लोगों को पानी पिलाने की योजना पर अरबों रुपए खर्च कर चुकी है। शहर के लोगों को हर घर तक साफ पानी पिलाने की योजना 2007 में बनाई गई। इसके अब 17 साल पूरे होने वाले हैं, लेकिन आज भी योजना का काम चल ही रहा है। अरबों रुपए इस योजना पर खर्च हो चुके हैं, जो बजट इस योजना को पूरा करने के लिए बनाया गया था, उसकी लागत डबल हो गई है। इसके बावजूद लोगों के घरों में आज तक पीने का पानी नहीं पहुंच पाया है। शहर में आज भी लोग समय पर स्वच्छ पानी आने का इंतजार कर रहे हैं। कई घरों तक तो सप्लाई पानी भी नहीं पहुंच पा रहा है।

जल मीनार बनी पर लाभ नहीं

रांची में जलमीनार का निर्माण तो हुआ लेकिन शहर में जलापूर्ति प्रभावित हो रही है। रांची में वाटर सप्लाई स्कीम फेज-1 और फेज-2 के तहत करोड़ों रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं। इसके माध्यम से लोगों को सपना दिखाया गया कि उन्हें घर तक शुद्ध पानी पहुंचाया जाएगा। मगर यह सपना हकीकत में बदलने के बजाय सपना ही रह गया है। सरकार ने जिस जलमीनार के निर्माण पर करोड़ों खर्च किए, वो चालू ही नहीं हो रही है।

जलमीनार का जानें स्टेटस

बता दें कि जलापूर्ति योजना के मुताबिक राजधानी के 2 लाख 10 हजार घरों तक पानी पहुंचाने का लक्ष्य था। जुडको द्वारा पूरे शहर में इसके लिए 13 जगहों पर जलमीनार का निर्माण कराया जा रहा है। इसमें बकरी बाजार, अमरुद बगान, पुलिस लाइन, सीपेट कैंपस, बनहोरा में 2, आईटीआई बस स्टैंड और पटेल पार्क में जलमीनार का कार्य पूरा हो चुका है। वहीं, पांच ऐसी जलमीनार हैं, जिसका निर्माण कार्य अंतिम चरण में है। लेकिन इन जलमीनारों से पानी नहीं पहुंच रहा है। 1100 करोड़ पाइपलाइन पर सरकार द्वारा रांची वाटर सप्लाई स्कीम फेज-1 और फेज-2 के तहत 1100 करोड़ की लागत से पूरी राजधानी क्षेत्र में पाइपलाइन बिछाई जा रही है। इस कार्य के लिए जुडको ने तीन कंपनियों को काम दिया है। मगर हालात यह है कि पाइपलाइन बिछाने में हो रही देरी के कारण जलमीनार तैयार होने के बावजूद भी इन क्षेत्रों में पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है।

देरी के कारण बढ़ा बजट

इस योजना की शुरुआत जब की गई थी उस समय 288 करोड़ रुपए में कंपनी को काम करने के लिए टेंडर दिया गया था, लेकिन देरी की वजह से इसकी लागत मूल्य 288 करोड़ रुपए से बढ़कर 373 करोड़ रुपए हो गई। जेएनएनयूआरएम के तहत रांची शहरी जलापूर्ति योजना की लागत राशि 288 करोड़ रुपए तय हुई थी। काम शुरू हुआ। गड़बडिय़ां सामने आने के बाद संवेदक आईवीआरसीएल ने बीच में ही काम छोड़ दिया। फिर सरकार ने उसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया। नए सिरे से योजना की डीपीआर बनी तो लागत मूल्य 288 करोड़ रुपए से बढ़कर 373 करोड़ रुपए पड़ रहा है।

जुडको ने उठाया है बीड़ा

रांची नगर निगम के दायरे में आने वाले घरों में हर घर जल योजना के तहत पानी कनेक्शन देने का काम झारखंड अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनी जुडको कर रही है। यही पानी कनेक्शन देने के साथ-साथ वाटर मीटर भी लगा रही है। रांची के मुहल्लों में वाटर सप्लाई के लिए पाइप तो बिछा दी गई है, लेकिन उसमें से पानी कब मिलना शुरू होगा। यह ठीक-ठीक कुछ कहा नहीं जा सकता है। रांची नगर निगम की मानें तो लोगों को पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी वार्डों में पानी के कनेक्शन व मीटर लगाए जा रहे हैं।

2 लाख से ज्यादा होल्डिंग वाले

हर घर जल पहुंचाने की योजना की रफ्तार देखें तो आंकड़े इसकी हकीकत बयां करते हैं। पेयजल देने का काम उन घरों में किया जा रहा है, जो होल्डिंग टैक्स के दायरे में आते हैं। रांची नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार, शहर में कुल 2 लाख 10 हजार घर होल्डिंग टैक्स के दायरे में आते हैं, जिसमें 50 हजार से ज्यादा घरों में ही पानी कनेक्शन लगाया जा सका है।

अब तक क्या हुआ

-2006-07 में रांची शहरी जलापूर्ति योजना का काम शुरू हुआ।

-2008-09 में केंद्र सरकार ने इस योजना को स्वीकृति दी।

-2009 में नगर विकास विभाग ने काम करने से मना कर दिया। पीएचईडी को योजना हस्तांतरित कर दी गई। फिर हैदराबाद की कंपनी आईवीआरसीएल को काम मिला।

-मार्च 2010 में आईवीआरसीएल ने काम शुरू किया। दो बार समय सीमा बढ़ाई गई।

-जून 2013 में कंपनी को ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया। बाद में कई और कंपनियों को काम अलॉट किया गया और इसकी लागत बढ़ती गई।