रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में अगर किसी को अस्पताल में मरीज के लिए खून की जरूरत होती है तो पूरे शहर में हर किसी की जुबान पर एक ही नाम होता है अतुल गेरा। लाइफ सेवर्स संस्था के नाम से शुरू हुआ यह मुहिम बढ़ता गया और रांची में कई लोग इससे जुड़ते चले गए। अतुल गेरा, लाइफ सेवर्स संस्था। राजधानी में बड़े उद्देश्य के साथ की गई कई छोटी-छोटी कोशिशें अब बड़े बदलाव की वाहक बन रही हैं। कई ऐसे भी हैं, जिनके प्रयास लोगों की जिंदगी बचाने और नई सोच विकसित करने में कारगर साबित हुए। रांची की लाइफ सेवर्स टीम इन्हीं में से एक है। किसी को खून की जरूरत हो, कहीं खून की खरीद-बिक्री की शिकायत हो या किसी को रक्तदान करना हो, ऐसे में लाइफ सेवर्स टीम का नाम ही लोगों को याद आता है।

डेढ़ दशक से कर रहे काम

पिछले 15 साल से लाइफ सेवर्स के सदस्यों ने सोसायटी के विभिन्न वर्गों के साथ जुड़कर रांची में जहां रक्तदान का रिकार्ड बनाया है। वहीं, रा'य के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान रिम्स के ब्लड बैंक को भी बड़ा सपोर्ट उपलब्ध कराया है। इनकी कोशिश है कि बगैर किसी परेशानी के जरूरतमंदों को खून और खून के अवयव मिलें। साथ ही खून का अवैध कारोबार और खून के नाम पर लूट-खसोट बंद हो। सरकारी अस्पतालों में हालत अब काफी बदली है, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में अब भी खून के बदले मरीजों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है। संस्था इस हालात को बदलने में जुटी है। अस्पतालों को यह समझने की जरूरत है कि खून का प्रबंधन करना मरीजों की नहीं, बल्कि अस्पतालों की जिम्मेदारी है।

भटकते रहते हैं मरीज के परिजन

अतुल गेरा अपना अनुभव शेयर करते हुए बताते हैं कि पहले अस्पतालों में भर्ती मरीजों के परिजनों को खून के लिए इधर-उधर भटकता देख तकलीफ होती थी। ऐसे में इस हालात को बदलने की ठानी और शुरुआत रक्तदान से की। कुछ लोगों का समूह बनाकर काम शुरू किया गया। फिर पुलिसकर्मियों, सेना के जवानों, बैंककर्मियों, प्रशासनिक अधिकारियों, समाजसेवा में जुटे अलग-अलग समूहों, युवाओं और संगठनों के बीच जाकर रक्तदान कैंप लगाकर ब्लड बैंक में व्याप्त खून की कमी को दूर करने का प्रयास शुरू किया। इस अभियान को हर वर्ग का व्यापक समर्थन मिला और देखते ही देखते रिम्स के ब्लड बैंक में रक्तदाताओं का खून जरूरत के हिसाब से पर्याप्त जमा होने लगा।

लोगों को जागरूक कर रही संस्था

लाइफ सेवर्स संस्था लोगों को रक्त-दान के प्रति तो जागरूक करती ही है, साथ ही उन्हें यह भी बताती है कि वे रक्त की जरूरत होने पर बिचौलियों के चक्कर में न पड़ें। जागरूकता और शिविर लगाकर संस्था के लोग रक्त का प्रबंध करते हैं। जमा किये गये रक्त को उन जगहों पर पहुंचाने की व्यवस्था करते हैं, जहां से अधिक से अधिक जरूरतमंद लोगों की मांग पूरी हो सके। रिम्स के ब्लड बैंक में भी रक्त रखा जाता है। हमारा काम करने का सिस्टम ऐसा है कि हमें पता रहता है कि रांची के किस ब्लड बैंक में रक्त का कितना स्टॉक है। कहां है, कितनी जरूरत है। यही कारण है कि संपर्क में आए लोगों को समय पर रक्त की आपूर्ति ब्लड बैंकों से कर दी जाती है। गल्र्स स्कूलों में लड़कियों को एनीमिया को लेकर जागरूक करने से लेकर एनीमिया से संबंधित खून की दिक्कतों में संस्था लड़कियों को इलाज और खून भी उपलब्ध करा रही है।

थैलीसीमिया के मरीजों के लिए कर रहे हैं काम

बीआईटी मेसरा के असिस्टेंट प्रोफेसर विशाल एच शाहा 2012 से रांची शहर के लोगों को खून उपलब्ध कराने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं। खुद से अभी तक 93 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं। वह बताते हैं कि लाइफ सेवर्स संस्था के साथ मिलकर रांची में 15 साल से काम कर रहे हैं। 2012 से रक्तदान और जागरूकता शिविर लगाने का काम बहुत तेजी से चल रहा है। इस बीच संस्था ने सदर अस्पताल में थैलीसीमिया के मरीजों के लिए एक डिकेड सेंटर बनाया है, जो थैलीसीमिया मरीजों के लिए बहुत मददगार साबित हो रहा है। पहले केवल रिम्स में उपलब्धता होने के कारण वहां काफी भीड़ रहती थी और लोगों को ट्रांसमिशन में काफी समय लग जाता था। अब केवल कुछ घंटों में काम हो जाता है। अब थैलीसीमिया पर प्रभावी नियंत्रण की दिशा में भी संस्था प्रयासरत है।

लोगों को किया जा रहा अवेयर

श्री शाहा बताते हैं कि लोगों को इसके लिए जागरूक भी किया जा रहा है कि थैलीसीमिया से प्रभावित दो लोग शादी नहीं करें ताकि ब'चा थैलीसीमिया से प्रभावित न हो। साथ ही हर गर्भवती की जांच के लिए आम लोगों और चिकित्सकों को जागरूक किया जा रहा है कि अगर गर्भस्थ शिशु थैलीसीमिया से प्रभावित दिखता है तो ऐसे मामलों में भविष्य की दिक्कतों से बचने के लिए डॉक्टर की सलाह लेकर गर्भपात कराया जा सकता है। ऐसा गर्भपात गैरकानूनी भी नहीं है।