रांची (ब्यूरो) । ब्रह्माकुमारी संस्था द्वारा मकर संक्रान्ति के अवसर पर आध्यात्मिक समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए निर्मला बहन ने कहा मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। इस शुभ दिन तिल खिचड़ी का दान करते हैं। वास्तव में स्थूल परम्पराओं में आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है। सारी मानवता दुखी-अशांत हैं। हर कोई परिवर्तन के इंतजार में हैं। सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है।

संगमयुग पर ब्रम्हा

ऐसे समय में विश्व सृष्टिकता परमात्मा शिव कलियुग, सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रम्हा के तन में आ चुके हैं। जिस प्रकार भक्तित मार्ग में पुरूषोत्तम मास में दान पुण्य आदि का महत्व होता है उसी प्रकार पुरूषोत्तम संगमयुग में ज्ञान स्नान करके बुराईयों का दान करने से पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उतम पुरूष बन सकती है।

इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरीयता की

मिलावट हो चुकी है अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण

करने हैं।