रांची(ब्यूरो)। वायु प्रदूषण तो बीमार करता ही है, अब नॉइज पॉल्यूशन भी लोगों को बीमार करने लगा है। जी हां, सिटी में तेज साउंड से लोगों के सुनने की क्षमता खत्म हो रही है। अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन इस ओर जिम्मेवार का कोई ध्यान नहीं है। वहीं, नॉइज पॉल्यूशन बढ़ाने वालों की तो पूछिए ही मत। दरअसल, मोरहाबादी, कांके रोड, अशोक नगर, रातू रोड, लालपुर जैसे इलाकों में रूफटॉप बार एंड रेस्टोरेंट खुल गए हैं, जहां देर रात तक लोग पार्टियां कर रहे हैं। हाई साउंड में डीजे बजता है। लोगों के कानों तक दिन-रात साउंड गूंज रहे हैं। सिटी के बीचोबीच ओपेन बार एंड रेस्टोरेंट इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेवार हैं। बरियातू, लालपुर, मोरहाबादी, कांके रोड जैसे रेसिडेंशियल इलाकों में तेज आवाज से देर रात तक डीजे बज रहा है।

गाडिय़ों के प्रेशर हॉर्न

गाडिय़ों के प्रेशर हार्न के कारण भी शहर में लोग ऊंची सुनने लगे हैं। सिटी में जिस रफ्तार से वाहनों की संख्या बढ़ी है, उससे कहीं ज्यादा गति से साउंड और एयर पॉल्यूशन बढ़ा है। गाडिय़ों में बेरोक-टोक बजते प्रेशर हॉर्न, कान फ ाडऩे वाले म्यूजिक और तेज गति से गाड़ी ड्राइव करने से कई इलाकों में सामान्य से कई गुना साउंड पॉल्यूशन बढ़ गया है। रांची में जहां साउंड पॉल्यूशन का लेवल 50 डेसीबल होना चाहिए, वहां यह 68 डेसीबल से ज्यादा हो गया है। सबसे ज्यादा साउंड पॉल्यूशन कचहरी चौक, बिरसा चौक और हटिया मार्केट इलाके में है। इसके अलावा सीएमपीडीआई, अरगोड़ा चौक, रातू रोड चौराहा, हाईकोर्ट, अल्बर्ट एक्का चौक, लाला लाजपत राय चौक और प्रोजेक्ट बिल्डिंग के पास भी सामान्य डेसीबल से काफ ज्यादा साउंड पॉल्यूशन पाया गया। वाहनों में प्रेशर हॉर्न और बिना जांच किए वाहनों को परमिट देना साउंड पॉल्यूशन की बड़ी वजह है।

सिर्फ दिवाली में जांच

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से सामान्य दिनों में ध्वनि प्रदूषण की जांच की व्यवस्था नहीं है। रांची में प्रदूषण बोर्ड की ओर से दिवाली के समय जांच होती है बाकी दिनों में जांच नहीं होती है। परिवहन विभाग भी इस मामले में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करता है। ऐसे में बढ़ रहे साउंड पॉल्यूशन का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। दीपावली के समय प्रदूषण विभाग बस एक दिन के लिए जांच करता है और उसकी रिपोर्ट भी जारी करता है, उसके बाद पूरे साल जांच नहीं होती।

ये बीमारियां हो रहीं

पुरूलिया रोड के डॉ रोहित कुमार का कहना है कि नॉइज पॉल्यूशन से कई तरह की बीमारियां होती है। 60 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच 8 से 10 घंटा रहने की स्थिति में थकान, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और सिर दर्द होना स्वाभाविक है। जिन लोगों की उम्र 40 पार हो चुकी है, अगर वे लगातार शोरगुल वालों के बीच रहते हैं तो उनमें हाई बीपी, हृदय रोग, स्थाई बहरापन और स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।

सुनने की क्षमता कम

साउंड पॉल्यूशन का बुरा प्रभाव सुनने की क्षमता पर भी पड़ता है। लगातार शोरगुल के बीच रहने से ऊंचा सुनने की शिकायत हो जाती है। तेज आवाज सिर्फ कान के पर्दे को ही प्रभावित नहीं करता है, बल्कि मानसिक संतुलन को भी बिगाड़ देता है।

रेसिडेंशियल इलाकों में भी राहत नहीं

रांची के लोगों को दिन में गाडिय़ों के तेज आवाज के बीच तो रहना ही पड़ता है, रात होने पर जब वो घर जाते हैं तो वहां भी उनको तेज आवाज से छुटकारा नहीं मिलता है। मोरहाबादी, कांके रोड, अशोक नगर, रातू रोड, लालपुर जैसे इलाकों में रूफटॉप बार एंड रेस्टोरेंट खुल गए हैं, जहां देर रात तक लोग जमकर पार्टियां करते हैं। हाई साउंड में डीजे बजता है। लोगों के कानों में दिन-रात साउंड गूंजता रहता है।

90 डेसीबल और उससे अधिक आवाज सीधे कान में जाने से इसके पर्दे को नुकसान पहुंचता है। दूसरी ओर 110 डेसीबल या उससे ज्यादा आवाज होने पर कान की नस को भी नुकसान हो सकता है। अधिक साउंड के बीच काफी देर तक रहने के कारण अधिक उम्र के लोगों को कई अलग-अलग तरह की परेशानियां होती हैं।

-डॉ रणधीर कुमार, फिजिशियन, गणेश हॉस्पिटल