RANCHI: कहीं आपको बहरा ने बना दे गाडि़यों के प्रेशर हॉर्न। जी हां, राजधानी रांची में गाडि़यों में बेरोक-टोक बजते प्रेशर हॉर्न, कान काड़ू म्यूजिक बजना और तेज गति से गाड़ी ड्राइव करने से कई इलाकों में सामान्य से कई गुना साउंड पॉल्यूशन बढ़ गया है। रांची के कई इलाके में साउंड पॉल्यूशन का लेवल ख्0 से फ्0 के बजाय पीक आवर में भ्0 डेसीबल से ऊपर तक पहुंच गया है।
जांच की कोई व्यवस्था नहीं
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से सामान्य दिनों में ध्वनि प्रदूषण जांच की व्यवस्था नहीं है। रांची में प्रदूषण बोर्ड की ओर से सिफर् दिवाली के समय जांच होती है, बाकी दिनों में जांच नहीं होती है। परिवहन विभाग भी इस मामले में किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं करता है। ऐसे में बढ़ रहे साउंड पॉल्यूशन का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
यहां सबसे ज्यादा पॉल्यूशन (बॉक्स)
कचहरी चौक, बिरसा चौक व हटिया मार्केट इलाके में है। इसके अलावा सीएमपीडीआई, अरगोड़ा चौक, रातू रोड चौराहा, हाइकोर्ट, अल्बर्ट एक्का चौक, लाला लाजपत राय चौक और प्रोजेक्ट बिल्डिंग के पास ।
बॉक्स
त्योहारों में 77 डेसीबल तक साउंड पॉल्यूशन
दिवाली जैसे त्योहार में साउंड पॉल्यूशन 77 डेसीबल तक पहुंच गया है। इस साल दिवाली के त्योहार की रात ध्वनि प्रदूषण का स्तर शहर के अधिकतर स्थानों पर अनुमान से अधिक रिकॉर्ड किया गया। दिवाली के दिन संवेदनशील क्षेत्र झारखंड हाइकोर्ट के पास ध्वनि प्रदूषण म्7.फ् डेसीबल रिकॉर्ड किया गया। अल्बर्ट एक्का चौक पर दिवाली की रात 7म्.8 डेसीबल शोर रिकॉर्ड किया गया।
इन बीमारियों का बढ़ा खतरा
हार्ट प्रॉब्लम
रिम्स के रिटायर्ड एचओडी और सरयू नर्सिग होम के डॉ सुरेश प्रसाद बताते हैं कि भ्0 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच 8 से क्0 घंटा रहने की स्थिति में थकान, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और सिर दर्द जैसी शिकायतें मिलती हैं। जिनकी उम्र ब्0 पार हो चुकी है, अगर वे लगातार शोरगुल के बीच रहते हैं तो उनमें हाई बीपी, हार्ट प्रॉब्लम, स्थाई बहरापन सहित स्मरण शक्ति भी कमजोर होने का खतरा है।
बहरापन
डॉक्टरों का कहना है कि साउंड पॉल्यूशन का बुरा प्रभाव सुनने की क्षमता पर भी पड़ता है। लगातार शोरगुल के बीच रहने से ऊंचा सुनने की शिकायत हो जाती है। तेज आवाज सिर्फ कान के पर्दे को ही प्रभावित नहीं करता है, बल्कि मानसिक संतुलन भी बिगाड़ देता है।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
जिन लोगों की उम्र ब्0 पार हो चुकी है। अगर वे लगातार शोरगुल वालों के बीच रहते हैं तो उनमें हाई बीपी, हृदय रोग, स्थाई बहरापन और स्मरण शक्ति कमजोर हो जाता है।
-डॉ सुरेश प्रसाद, रिटायर्ड एचओडी, रिम्स
भ्0 डेसीबल से ज्यादा आवाज के साथ ही परेशानी शुरू हो जाती है। 90 डेसीबल और उससे अधिक आवाज सीधे कान में जाने से इसके पर्दे को नुकसान पहुंचता है। दूसरी ओर क्क्0 डेसीबल या उससे ज्यादा आवाज होने पर कान की नस व उसके पर्दे को नुकसान हो सकता है।
-डॉ जेके मित्रा, रिम्स
पर्यावरणविद् डॉ नितिश प्रियदर्शी बताते हैं कि रांची शहर में हाल के कुछ वर्षो में साउंड पॉल्यूशन बहुत तेजी से बढ़ा है। गाडि़यों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ट्रैफिक वाले इलाके में सबसे अधिक साउंड पॉल्यूशन होता है। बहुत देर तक साउंड में रहने के बाद लोग इरिटेट हो जाते हैं, नतीजन आए दिन रोड पर मारपीट हो रही है। उन्होंने कहा कि पेड़ ध्वनि प्रदूषण को रोकता है, लेकिन अपार्टमेंट कल्चर ने शहर में पेड़ों को गायब कर दिया है।
-डॉ नितिश प्रियदर्शी, पर्यावरणविद्
वर्जन
हमलोग तेज हॉर्न बजाने वालों पर कार्रवाई भी करते हैं। कई बार जांच की जाती है। फिर से जांच शुरू की जाएगी।
-नागेंद्र पासवान, डीटीओ रांची