रांची(ब्यूरो)। सिटी में बालू की बिक्री पर अवैध रोक लगी हुई है। जी हां, रांची के 18 घाटों का टेंडर फाइनल हो गया है, फिर भी लोगों को लीगल तरीके से बालू नहीं मिल रहा है। बालू के लिए उन्हें इल्लीगल तरीका अपनाना पड़ रहा है, जिसमें लोगों की जेब ज्यादा ढीली हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब घाटों का टेंडर हो गया है तो सरकार बालू की वैध बिक्री को लेकर गंभीर क्यों नहीं है। बहरहाल, रांची में बालू की किल्लत जारी है। इससे बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट्स रुक गए हैं और आम लोग भी अपने घर नहीं बना पा रहे हैं। वहीं, रिपेयरिंग के कार्य भी प्रभावित हुए हैं।

दिसंबर में खुला था टेंडर

विभागीय सूत्रों की मानें तो रांची के 18 बालू घाटों का टेंडर फाइनल हो गया है। रांची जिले के 19 बालू घाटों के लिए दिसंबर महीने में टेंडर खोला गया था। इसमें कुल 18 बालू घाटों का टेंडर फ ाइनल किया गया। जबकि एक का एक ही बिडर होने के कारण रद्द कर दिया गया। इस टेंडर में कैटेगरी ए के 8 बालू घाट और कैटेगरी बी के 11 बालू घाट हैं। इसे लेकर झारखंड राच्य खनिज विकास निगम(जेएसएमडीसी) को सूचित कर दिया गया है। लेकिन अभी भी लोगों को बालू को लेकर परेशानी बनी हुई है।

डेढ़ गुना महंगा

बालू का काला कारोबार थमने का नाम नहीं ले रहा है। 18 हजार का बालू 28 हजार रुपए में बिक रहा है। रांची सहित राच्य के अधिकतर जिलों में घाटों की बंदोबस्ती की जा रही है। पिछले पांच सालों से बिना टेंडर के ही बालू का खनन और परिवहन हो रहा है। हालत यह है कि जिन लोगों को अपने घर या फ्लैट का निर्माण कराना है, उनको मजबूरी में महंगा बालू खरीदना पड़ रहा है। लोग महंगा बालू खरीदकर भी घर बना रहे हैं, लेकिन पिछले सप्ताह से रांची में बालू नहीं पहुंच रहा है। इस कारण जिन लोगों को घर की छत की ढलाई या दूसरा काम करना था, वे नहीं कर पा रहे हैं।

पिछले साल ढाई गुना महंगा बिका था

बालू की कमी होने के कारण लोगों को मुंहमांगी कीमत पर बालू खरीदना होगा। पिछले साल भी किल्लत होने पर बिहार बंगाल से बालू मंगाना पड़ा था। तब 18 हजार रुपए वाला बालू 48 हजार में बिका था। बालू घाटों की बंदोबस्ती से पहले सभी जिलों का डिस्ट्रिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करनी जरूरी होती है। इस रिपोर्ट को इनवायरमेंट इंपैक्ट असेस्मेंट कमेटी को भेजा जाता है, ताकि पर्यावरण स्वीकृति ली जा सके। पर्यावरण स्वीकृति के बाद घाट का टेंडर किया जा सकता है।

डीएसआर बनाने में हुई देरी

जिले के अधिकारियों ने डीएसआर बनाने में ही देरी कर दी थी। इस वजह से कई जिलों की डीएसआर नहीं भेजी गई। रांची जिले के सभी घाटों की डिस्ट्रिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करके टेंडर भी कर दिया गया है।

धड़ल्ले से अवैध उठाव

बालू की किल्लत की वजह से रियल इस्टेट सेक्टर तो पहले से प्रभावित है। लोूगों को जिनको अपना घर बनाना है उन घरों का निर्माण भी धीमा हो गया है। क्योंकि, आवास योजना के लाभूकों को भी नुकसान हो रहा है। इस योजना के लाभुकों को 3000 रुपये प्रति टर्बों(140 सीएफटी) में मिलने वाला बालू 4,500 रुपए में खरीदना पड़ रहा है। इसके अलावा शहरों में 200 से अधिक पीसीसी रोडए नाली निर्माण पर भी असर पड़ेगा। जानकारी के अनुसार, रांची सहित राच्यभर में अवैध बालू का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। बालू कारोबारियों के अनुसार राच्यभर में रोजाना 700 से 800 हाईवा अवैध बालू की खरीद-बिक्री होती है। औसतन 28,000 रुपए प्रति हाईवा की दर से बालू की बिक्री होती है तो भी प्रति माह करीब 60 करोड़ रुपये का अवैध धंधा चल रहा है।

रांची जिला में बालू का टेंडर करके जेएसएमडीसी को भेज दिया गया है। लेकिन अभी तक वहां से कुछ भी हमलोगों को आदेश नहीं आया है। हमलोगों ने सभी चीजें नियमसम्मत करके भेज दी है।

-संजीव कुमार, जिला खनन पदाधिकारी, रांची