रांची (ब्यूरो)। राजधानी में बालू उपलब्ध है। लेकिन प्रशासन और बालू का स्टॉक करने वालों के बीच मामला उलझा हुआ है, जिसके कारण लोगों को बालू नहीं मिल पा रहा है। रांची डीसी ने 10 जून को एनजीटी का आदेश लागू होने के पहले ही कहा था कि रांची में 13 लाख सीएफटी बालू उपलब्ध है। इसलिए लोगों को दिक्कत नहीं होगी। लेकिन, प्रशासन ने जिन 25 स्टॉकिस्ट्स को बालू स्टॉक करने का लाइसेंस दिया, उन्हें बालू बेचने की छूट नहीं मिली है। क्योंकि, लाइसेंस देने और बालू स्टॉक होने के दो माह बाद प्रशासन ने सभी स्टॉकिस्ट््स से बालू लाने के दौरान कटी टोल पर्ची और जीपीएस ट्रैकर का रिकॉर्ड सहित चालान मांगा है।
क्यों नहीं बिक रहा बालू
दरअसल, स्टॉकिस्ट्स ने बिहार-बंगाल से बालू लाकर रांची में स्टॉक करने का हवाला देकर लाइसेंस ले लिया, लेकिन वे बिहार-बंगाल के जिस रास्ते से बालू लाए हैं, उस रास्ते की टोल पर्ची नहीं दे पाए। जिस वाहन से बालू आया, उस वाहन का जीपीएस रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं करा पाए हैं। ऐसे में स्पष्ट नहीं हो रहा है कि स्टॉक में रखा बालू बिहार-बंगाल से लाया गया है या रांची के ही घाटों से अवैध रूप से निकालकर जमा किया गया है। नतीजन, किसी भी स्टॉकिस्ट को बालू बेचने की अनुमति नहीं मिली है। दूसरी ओर, सरकार ने रांची जिला के जिन 19 घाटों का टेंडर किया था, उन घाटों से भी बालू नहीं निकाला गया। अब खामियाजा आम लोग भुगत रहे हैं।
मौखिक निर्देश पर फंसा मामला
बालू के स्टॉकिस्ट से टोल पर्ची और जीपीएस रिकॉर्ड लेने का कोई भी लिखित आदेश नहीं है। स्टॉकिस्ट को सिर्फ चालान देना है। लेकिन, रांची प्रशासन ने ऊपर के अधिकारियों के मौखिक निर्देश के बाद स्टॉकिस्ट से टोल पर्ची और जीपीएस रिकॉर्ड देना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि, इस पर स्पष्ट रूप से बोलने से सभी अधिकारी बच रहे हैं। इधर, स्टॉकिस्ट्स ने प्रशासन को पत्र लिखकर बताया है कि बिहार और बंगाल से बालू लाने के लिए किराये पर ट्रक और ट्रेलर लिया गया था। दो माह पहले बालू लाया गया। अब वो वाहन चालक कहां गाड़ी चला रहे हैं, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। क्योंकि, टोल प्लाजा की पर्ची और जीपीएस का रिकॉर्ड उन्हीं के पास है।
चोरी-छिपे बिक रहा बालू
सच्चाई यह है कि रांची में अब भी चोरी का बालू बिक रहा है। इसके लिए बालू माफिया मोटा पैसा वसूल रहे हैं। कुछ घाटों से चोरी-छिपे बालू निकाला जा रहा है। स्थानीय लोगों और पुलिस की मिलीभगत से बालू शहर तक लाया जा रहा है, लेकिन इसके लिए काफी पैसा वसूला जा रहा है। अगर स्टॉकिस्ट को बालू बेचने की अनुमति मिलती, तो ऐसी स्थिति नहीं रहती। बालू की कीमत में भी कमी आती।
कई प्रोजेक्ट्स हो गए बंद
राजधानी रांची में अपना घर बनाने वाले लोगों ने निर्माण कार्य को बीच में ही रोक दिया है। शहर में बालू की हो रही किल्लत के कारण कई लोगों ने निर्माण कार्य को पूरी तरह से रोक दिया है। शहर में 50 से अधिक प्रोजेक्ट बालू के अभाव में बंद हो चुके हैं। घाटों का टेंडर होने के बावजूद लोगों को बालू नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि अभी 40-45 हजार रुपए प्रति हाइवा बालू मिल रहा है।
रांची में 19 घाट का टेंडर
राज्य भर में बालू की भारी किल्लत है। इसमें राजधानी रांची भी शामिल है। रांची में पहले एक हाइवा बालू 18 हजार रुपये में मिलता था, लेकिन ब्लैक बालू 40 हजार रुपए में मिल रहा। वहीं, अब प्रति टर्बो बालू की कीमत 6500 से 7500 रुपए हो गई है, जो पहले तीन हजार रुपये थी। वह भी कठिन परिस्थितियों के बाद मिलता है। कारण यह है कि रांची में स्थित 19 बालू घाटों में से कोई भी चालू नहीं है। राज्य में केवल 21 बालू घाट कार्यरत हैं।
सरकारी दर 7.50 रुपए प्रति सीएफटी
जेएसएमडीसी की वेबसाइट पर बालू प्रति सीएफटी 7.50 रुपए है। इसके लिए वाहनों की व्यवस्था खुद करनी होगी। इसलिए वेबसाइट का उपयोग बहुत कम लोग करते हैं। दूसरी ओर, विभाग ने सैंड टैक्सी योजना का प्रस्ताव किया है। यह अभी प्रस्ताव के स्तर पर ही है।