रांची(ब्यूरो)। राजधानी का सदर थाना, जहां क्रिमिनल्स की बात तो दूर पुलिस के जवानों को भी डर लगता है। जी हां, कोकर इंडस्ट्रियल एरिया स्थित रियाडा बिल्डिंग में चल रहे सदर थाने का भवन इस कदर जर्जर हो चुका है कि वहां रहने वाले पुलिसकर्मी भी हमेशा डर के साये में ड्यूटी करने को विवश हैं। आलम ये है कि भवन की दीवारों पर पेड़़ की जड़ें निकल आई हैं। यहां की छत और दीवार से बारिश का पानी टपकता रहता है। थाने में पुलिस अफसरों तक के ठीक से बैठने की जगह नहीं है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के थाना है या कबाड़खाना अभियान के तहत आइए आज रूबरू होते हैं सदर थाना से।

डेली आते है दर्जनों मामले

सदर थाने में हर दिन दर्जनों मामले आते हैं। थाना का इलाका बड़ा है। आपराधिक गतिविधियां भी इस इलाके में ज्यादा होती हैं। लेकिन इसकी संरचना पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। थाने की हालत काफी जर्जर है। हालांकि मुख्य बिल्डिंग के बगल में एक और भवन निर्माण हुआ है, जहां शिकायतें सुनी जाती हैं। लेकिन यहां भी बैठने की ठीक से व्यवस्था नहीं है। इस थाने का खुद का भवन नहीं है। रियाडा की बिल्डिंग में सदर थाना संचालित हो रहा है। झारखंड पुलिस एक ओर जहां अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त हो रही है। वहीं आधे से अधिक थाने या तो किराये के मकान में ही चल रहे हैं या फिर जर्जर हालात में हैं। इन थानों में अपनी जान जोखिम में डाल कर पुलिसकर्मी काम कर रहे हैं।

रहता है भय का माहौल

सदर थाने में प्रवेश करने में भी लोगों को डर लगता है। मन में भय बना रहता है कि थाना भवन कहीं गिर ना जाए। ऐसे में यहां रह कर काम करने वाले पुलिसकर्मी किस दहशत में काम करते होंगे, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। इस तरह का यह राजधानी का इकलौता थाना नहीं है, बल्कि हिंदपीढ़ी, सुखदेव नगर थाना, तुपुदाना थाना, पंडरा थाना समेत आधे से अधिक थाने इसी तरह से जर्जर भवन में, किराये के मकान में चल रहे हैं। पुलिस एसोसिएशन की मानें तो केवल राजधानी की बात नहीं बल्कि सूबे में बने टीओपी को छोड़ दें तो कुल 510 थाने हैं। लेकिन इनमें नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के थानों को छोड़ दें तो 'यादातर थानों की स्थिति ऐसी ही है। जिले के पुलिस अधिकारी भी थानों की इस हालात से अ'छी तरह वाकिफ हैं। उनकी मानें तो जिलों से नए थाना भवन का प्रस्ताव मुख्यालय को भेजा गया है और वरीय पुलिस पदाधिकारी भी इस बात से भलीभांति अवगत हैं। लेकिन फिर भी थानों को संवारने की पहल नहीं हो पा रही है।

बरसात में स्थिति ज्यादा खराब

जर्जर पुलिस स्टेशन के भवनों में बारिश में 'यादा परेशानी होती है। भवन की छतों से पानी की बूंदे टपकने लगती हैं। थानों में रखी फाइल और दूसरे जरूरी कागजात भीगकर बर्बाद हो जाते हैं। सदर थाना भवन की हालत बहुत 'यादा खराब है। बिल्डिंग में कई जगह दरारें आ चुकी हैं। इतना ही नहीं, बिल्डिंग की छत पर ही छोटे-छोटे पौधे निकल आए हैं, जिससे छत कमजोर होने लगी है। यहां के पुलिस कर्मियों का कहना है कि कई सालों से बिल्डिंग का रेनोवेशन नहीं किया गया है। बारिश में परेशानी बढ़ जाती है। दीवारों से सीपेज होना शुरू हो जाता है। थाने को स्मार्ट बनाने के लिए कई बार योजना तैयार हुई। लेकिन इसे धरातल पर नहीं उतारा जा सका।

थानों को बनाना था स्मार्ट

करीब छह साल पहले सिटी के थानों को स्मार्ट बनाने की योजना बनी थी। रा'य भर के थानों को स्मार्ट बनाने का आदेश भी जारी किया गया। इसके लिए 39 करोड़ रुपए की राशि भी तय की गई। योजना के तहत सभी थानों का भवन जी प्लस टू किया जाना था। इन भवनों में टॉयलेट, रेस्ट रूम, रिक्रिएशन हॉल, वर्क स्टेशन बाउंड्री, पार्किंग, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, सीसीटीवी और फर्नीचर उपलब्ध कराने की रूपरेखा तैयार की गई थी। लेकिन एक-दो थानों के भवन निर्माण के बाद योजना ठंडे बस्ते में चली गई। जिन भवनों का निर्माण कराया गया वहां भी उक्त सभी सुविधाएं आज तक मुहैया नहीं कराई जा सकी हैं।