रांची (ब्यूरो) । श्वेताम्बर जैन मंदिर डोरंडा में जैन मूर्तिपूजक संघ के सातवें दिन शनिवार को पर्युषण पर्व में सात दिन तक आत्मा को तपाकर तैयार किया जाता है.तब आठवें दिन जो प्रमुख दिन होता है संवत्सरी उसके लिये तैयार होती है। इन आठ दिनों में क्रोध, मान, माया,लोभ से दूर होकर क्षमा, दया, करुणा ये गुण प्रगट होते हैं। आठवें दिन की पूजा अपने दिल में 84 लाख जीवयोनी से क्षमा मांगकर की जाती है। जैनधर्म का मूल मंत्र है किसी भी आत्मा को दु:खी नही करना सबकी आत्मा को अपने समान समझना।

जीवन के बारे में बताया

आज प्रथम तीर्थकर, प्रथम साधु, प्रथम भिक्षाचर आदिनाथ भगवान (ऋषभ भगवान) के जीवन के बारे में बताया गया। भगवान आदिनाथ के समय में मनुष्यों को अपनी जरूरत की सारी चीजें कल्पवृक्ष से प्राप्त होती थी लेकिन धीरे-धीरे कल्पवृक्ष की क्षमता घटने लगी थी तब भगवान ने अपनी पुत्री ब्राह्मी सुन्दरी को स्त्रीयों की 64 कलाएं सिखाई व असि, मसी, कृषि का आरंभ हुआ! हमारे भारत देश का नाम भगवान आदिनाथ भगवान के पुत्र भरत (चक्रवर्ती सम्राट) के नाम पर भारत हुआ है। शाम में भगवान महावीर के बचपन मे गुरु के पास अध्ययनरत का नाट्य मंचन हुआ जिसमें छोटे छोटे बच्चों ने भाग लिया सभी को कॉपी, किताब, पेंसिल आदि दिया गया।

प्रार्थना का कार्यक्रम किया

इधर, दिगम्बर जैन भवन में पर्वाधिराज पर्युषण के आज छठे दिन श्री साधु मार्गी जैन संघ के कार्यक्रम में स्वाध्यायी बंधु गौतम जी रांका और सुरेश जी बोरडिया ने सुबह रायसी प्रतिक्रमण के बाद प्रार्थना का कार्यक्रम किया। उसके बाद ध्यान का कार्यक्रम एवं सुबह 8 बजे से अंत:गढ़ सूत्र वांचन हुआ जिसमें गजसुकुमार के जीवन चरित्र के बारे में चर्चा की गई और उनके जीवन से शिक्षा लेने की प्रेरणा दी गई। अंत:गढ़ सूत्र में वर्णित ज्ञान व साधना से यह ज्ञात होता है कि मुक्ति प्राप्ति में ज्ञान की न्यूनाधिकता बाधक नहीं होती है अपितु ज्ञान, दर्शन, चारित्र के सम्यक् पालन से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इसके वाचन के पश्चात प्रवचन दिया जिसमे ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप का जैन धर्म में महत्व बताया गया। दिगंबर जैन भवन में जप दिवस के उपलक्ष्य में 24 घंटे का नवकार मंत्र का जाप का कार्यक्रम भी रखा गया जिसमें 12 घंटे महिलाएं एवं 12 घंटे पुरुष के द्वारा जप किया गया। शाम के वक्त प्रतिक्रमण और उसके बाद प्रवचन और भजन का कार्यक्रम हुआ।