टाटा जानेवाले रहेंगे टेंशन फ्री
मेरे बनने से रांची से जमशेदपुर जानेवाले लोगों को राहत मिलेगी। इसके साथ ही नामकुम रेलवे फाटक पर डेली घंटों लगनेवाले जाम से भी लोगों को निजात भी मिलेगी। लेकिन क्या आप जानते हैं, मुझे यहां तक पहुंचने के लिए इन 12 सालों में क्या-क्या सहना पड़ा है। अगर झारखंड हाईकोर्ट ने मेरी मॉनिटरिंग नहीं की होती, तो शायद आज भी मैं अधूरा रहता।
लागत है 35 करोड़ रुपए
सिटी में बढ़ती जाम की प्रॉब्लम और नामकुम रेलवे फाटक पर आए दिन हो रही दुर्घटना को रोकने के लिए साल 1998 में मेरे निर्माण के लिए धनंजय दुबे ने जनहित याचिका दायर की थी। इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया और मेरे निर्माण के लिए आदेश दिया। लेकिन सरकार ने शुरू से मेरी उपेक्षा की। हाईकोर्ट ने सरकार को 83 बार आदेश दिया। साल 2001 से मेरी मॉनिटरिंग शुरू की, फिर भी मुझको लेकर लेट-लतीफी चलती रही। सरकार ने हाईकोर्ट के सामने यह कबूल भी किया कि साल 2005 तक मेरा निर्माण हो जाएगा, लेकिन सरकार अपने वादे पर खरा नहीं उतर पाई। एक बार फिर मुझको लेकर याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और तय समय से काम पूरा करने की हिदायत दी। लेकिन इसके बावजूद भी साल 2008 तक मेरा काम पूरा नहीं हो पाया।
ब्रिज कंस्ट्रक्शन का अल्टीमेटम
सरकार के रवैये से तंग आकर छह अगस्त 2008 को झारखंड हाईकोर्ट ने छह माह के अंदर मेरा निर्माण कार्य पूरा करने का निर्देश दिया। तब मेरे निर्माण काम में कुछ तेजी लाई गई। लेकिन समय बीतते एक बार फिर मेरी उपेक्षा की जाने लगी. फिर हाईकोर्ट ने सरकार को लताड़ लगाई और 31 मार्च 2011 तक काम पूरा करने का सरकार को अल्टीमेटम दिया। लेकिन फिर भी समय से मेरा निर्माण नहीं हो पाया। सरकार ने कोर्ट से एक बार फिर कुछ मोहलत मांगी। कोर्ट ने मार्च 2011 तक काम पूरा करने का आदेश दिया। लेकिन यह समय सीमा पूरी होती उसके पहले ही फरवरी 2012 में सरकार ने हलफनामा दायर कर जून 2012 तक का समय मांगा। लेकिन इस तय सीमा के अंदर भी मेरा निर्माण पूरा नहीं हो पाया। हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकार को तलब किया, तब जाकर सरकार ने इस साल 7 जनवरी को हाईकोर्ट को बताया कि काम पूरा हो चुका है। अब इस महीने से मेरे ऊपर से वाहन आ जा सकेंगे।
ब्रिज बनने से होगा फायदा
नामकुम रेलवे फाटक से होकर जानेवाले लोगों को काफी परेशानी होती थी। सिंगल रोड होने के कारण कांटाटोली से लेकर नामकुम तक ट्रैफिक जाम हो जाता था। रेलवे फाटक औसत एक दिन में तीन घंटे बंद रहता था, जिसके कारण लोगों को फाटक के पास गाडिय़ां रोकनी पड़ती थी। इससे हजारों लीटर तेल बेकार में जल जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मेरे बनने से लोगों की परेशानी दूर हो जाएगी। जमशेदपुर और पुरुलिया से बड़ी संख्या में वाहन सिटी में आते हैं। इन वाहनों के कारण नामकुम में लेकर कांटाटोली तक जाम लग जाता था। जिसका असर सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था पर पड़ता था। इससे पूरी सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। दो लेन में मेरे ऊपर से गाडिय़ां गुजरेंगी, जिससे अब जाम नहीं लगेगा और सिटी की ट्रैफिक व्यवस्था ठीक रहेगी।
पेट्रोल और डीजल की बचत
नामकुम रेलवे फाटक के बंद होने और ट्रैफिक जाम होने से डेली हजारों लीटर पेट्रोल और डीजल यूं ही बेकार में जल जाता था, लेकिन अब मेरे बनने से यह नहीं जलेगा। इससे लोगों के डीजल और पेट्रोल पर बेवजह खर्च होनेवाले पैसे की बचत होगी।