रांची(ब्यूरो)। सिटी के बाजारों में सुरक्षा का घोर अभाव है। बाजार में हजारों लोग आते-जाते हैं लेकिन फिर भी यहां लोगों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। सुरक्षा की कमी के कारण हमेशा बाजारों में दुर्घटना की आशंका बनी रहती हैं। बाजारों में सबसे बड़ी कमी आग से निपटने की नजर आती है। राजधानी के लगभग सभी बाजारों में फायर सेफ्टी का कोई इंतजाम नहीं है। सिटी के हार्ट में बसे शास्त्री मार्केट में भी फायर सेफ्टी को लेकर कोई व्यवस्था नहीं है। इस मार्केट में स्थित किसी भी दुकान में न तो फायर एक्सटिंग्विशर है और न ही अन्य सेफ्टी टूल्स। मार्केट में सैकड़ों दुकानें हैं जहां हर दिन हजारों लोग शॉपिंग के लिए आते हैं। सिर्फ रांची ही नहीं, बल्कि आसपास से भी लोग इस मार्केट में खरीदारी करने आते हैं।
सबसे बड़ा गारमेंट्स मार्केट
शास्त्री मार्केट सिटी का सबसे बड़ा गारमेंट्स मार्केट है। यह एक ऐसा मार्केट है, जहां लड़कियों, महिलाओं और बच्चों से संबंधित हर तरह के कपड़े मिलते हैं। दुकानदारों की मानें तो यह बाजार करीब 50 साल पुराना है। अल्बर्ट एक्का चौक के समीप इस मार्केट में लगभग 200 से अधिक दुकानें हैं। अधिकतर दुकानों में कपड़े या कॉस्मेटिक आइटम की बिक्री होती है। इस मार्केट की हालत भी काफी जर्जर हो चुकी है। कभी भी कोई दुर्घटना हो सकती है। आग जैसी दुर्घटना होने पर यहां सुरक्षा से संबंधित कोई उपकरण यहां नहीं लगे हुए हैं। जिससे कभी भी दुकानदारों और ग्राहकों केलिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है।
यहां पहले भी अगलगी
मार्केट में पहले भी अगलगी हो चुकी है। फिर भी यहां के दुकानदार इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। न ही प्रशासन या नगर निगम की ओर से कोई सुरक्षात्मक उपाय किए जा रहे हैं। बीते साल इस मार्केट में स्थित एक दुकान में आग लगी थी। दुकान में रखे सामान जल गए। भारी नुकसान हुआ। आग लगने पर यहां के दुकानदार बाल्टी से पानी भर कर आग बुझाने का प्रयास करते हैं। क्योंकि न तो यहां फायर सेफ्टी किट लगी हुई हैं और न ही दमकल कर्मियों के लिए मार्केट के भीतर जाने का रास्ता ही है।
फायर ब्रिगेड का रास्ता नहीं
शास्त्री मार्केट में संकरा रास्ता हैं। पतली-पतली गलियों में फायर ब्रिगेड वाहन तो दूर की बात है छोटे वाहन भी नहीं जा सकते हैं। करीब छह दशक पहले बसा शास्त्री मार्केट आज अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है। उस समय व्यवस्थित तरीके से इस मार्केट को नहीं बसाया गया। एक लाइन से छोटी-छोटी कई दुकाने हैं। जहां बेसिक सुविधाएं भी नहीं हैं। दुकान की छत भी जर्जर हो चुकी हैं। सीढिय़ों व छतों पर झाडिय़ां उग आई हैं। काई लगे रास्ते से गल्र्स को कपड़े की सिलाई के लिए छत पर कारीगर की दुकान में जाना पड़ता है।

क्या कहते हैं कस्टमर्स
जब भी कपड़ा लेना होता है शास्त्री मार्केट ही आते हैं। यहां हर रेंज के कपड़े किफायती दाम में मिल जाते हैं। लेकिन यहां सुरक्षा की भारी कमी है। इस पर ध्यान देना चाहिए।
-संतोष

आग लगने पर यहां भागने की भी जगह नहीं मिलेगी। सिर्फ कपड़े की दुकान होने से आग को भीषण रूप लेने में भी समय नहीं लगेगा। ऐसे में फायर सेफ्टी टूल्स रखना जरूरी है।
- आशिष

शास्त्री मार्केट में ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां कपड़े खरीदने आती हैं। लड़कियों के लिए यह फेवरिट मार्केट है। लेकिन उन्हीं के लिए यहां कोई बेसिक फैसिलिटीज नहीं है। आग से बचाव तो दूर की बात है।
- नेहा


1962 में इस मार्केट का निर्माण कराया गया। पाकिस्तान से हिंदूस्तान आये रिफ्यूजियों की रोजी-रोटी के लिए यह स्थान उपलब्ध कराया गया था। राष्ट्रपति की ओर से दुकान लगाने की परमिशन दी गई थी। धीरे-धीरे सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं।
-रंजीत कुमार गुप्ता, सेक्रेटरी, शास्त्री मार्केट