रांची (ब्यूरो) । विहंगम योग संस्थान की ओर से रांची के कार्निवल हॉल में सत्संग-भजन-प्रवचन-प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत अ अंकित श्वेत ध्वजा फहरा कर की गई। दीप प्रज्वलन कर सद्गुरु का आह्वान किया गया। स्वागत गान मंगल गान और प्रार्थना कर विश्व शांति की कामना की गई। शताब्दी समारोह महोत्सव 25000 कुंडीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के निमित कन्याकुमारी से कश्मीर तक संत प्रवर विज्ञानदेव जी महाराज का राष्ट्रव्यापी संकल्प यात्रा चल रही है। इसी कडी में संत प्रवर विज्ञानदेव जी महाराज का भजन-सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में विहंगम योग के अनुयायी पहुंचे और सत्संग का लाभ लिया।

सर्वोन्मुखी विकास होता है

कार्यक्रम के दौरान संत प्रवर विज्ञानदेव जी महाराज ने कहा जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान की अत्यंत अनिवार्यता है। ज्ञान से एक साधक का जीवन का सर्वोन्मुखी विकास होता है। भारतीय संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। भारतीय संस्कृति ने विरासत के रूप में आध्यात्मिकता को मानव कल्याण के लिए सहज रूप में प्रदान किया है। जो धर्म से लेकर मोक्ष की यात्रा कराती है। जो विश्व की आदि संस्कृति, विश्ववारा संस्कृति है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की चतु:सूत्री ही भारतीय संस्कृति का आधार है। महाराज जी ने कहा कि भीतर की अनंत शक्ति का सच्चा ज्ञान स्वयं को जानने से होता है। आंतरिक शांति के अभाव से ही आज विश्व में अशांति है।

सीखा क्रियात्मक योग साधना

उन्होंने जय स्वर्वेद कथा के क्रम में कहा कि भारत की आत्मा का नाम अध्यात्म है। आध्यात्मिक महापुरुषों के बदौलत ही भारत विश्व गुरु रहा है, विश्वगुरु है और मैं कहता हूं भारत विश्व गुरु रहेगा। विश्वगुरु भारत की आध्यात्मिक संस्कृति पूरे विश्व को प्रेम, शांति एवं आनन्द का संदेश देती रही है। हमारी आंतरिक शांति द्वारा ही विश्व-शांति संभव है। विज्ञानदेव जी महाराज ने दिव्यवाणी के दौरान श्रद्धालुओं को संदेश दिया कि विहंगम योग के प्रणेता अमर हिमालय योग अनन्त श्री सद्गुरु सदाफलदेव जी महाराज ने अपनी गहन साधना द्वारा ईश्वर से योग की प्राप्ति की एवं इस अतिदुर्लभ विज्ञान को स्वर्वेद नामक अद्वितीय आध्यात्मिक सद्ग्रंथ द्वारा जनमानस को सुलभ कर दिया। स्वर्वेद हमारी आध्यात्मिक यात्रा को सदैव जागृत रखता है।

खुद की दूरी मिटाने के लिए

संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं को विहंगम योग के क्रियात्मक योग साधना को सिखाया। कहा कि यह साधना खुद से खुद की दूरी मिटाने के लिए है। संत प्रवर श्री विज्ञानदेव जी महाराज की दिव्यवाणी जय स्वर्वेद कथा के रूप में लगभग 2 घंटे तक प्रवाहित हुई। स्वर्वेद के दोहों की संगीतमय प्रस्तुति से सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। इस अवसर पर प्रमुख रूप से संत किशन लाल, सुरेन्द्र सिंह, गजेंद्र सिंह, ललित सिंह, रामचंद्र तिवारी, विष्णुकांत खेमका, अनिल शर्मा, किरण प्रसाद, एसएन शर्मा, राम लखन राणा, जितेंद्र सिन्हा, बसंत सिन्हा, विकास आर्या आदि लोग उपस्थित रहे।