रांची (ब्यूरो)।सदर हॉस्पिटल की नई बिल्डिंग का संचालन शुरू हो चुका है। लेकिन यहां छह साल पहले लगाया गया सोलर पैनल आज तक शुरू नहीं हुआ है। हैरानी की बात तो यह है कि अबतक इसे हॉस्पिटल के मेन कनेक्शन से भी नहीं जोड़ा गया है। जिस उम्मीद से यहां सोलर प्लांट लगाया गया था, वो जंग खा रहा है। न तो प्लांट शुरू किया गया और न ही हॉस्पिटल प्रबंधन ने इसका फायदा उठाया। इस पैनल को लगाने में चार करोड़ 70 लाख रुपए खर्च किए गए थे। जनता की गाढ़ी कमाई से लगाए गए सोलर प्लांट धीरे-धीरे बर्बाद होने लगे हैं। हॉस्पिटल प्रबंधन की ओर से अभी तक ना तो सोलर सिस्टम को अस्पताल के एलटी लाइन से जोड़ा गया है और ना ही प्रबंधन की ओर से नेट मीटर के लिए ज्रेडा को आवेदन दिया गया है।
350 सोलर पैनल्स
हॉस्पिटल की छत पर 350 सोलर पैनल्स लगाए गए हैं। हॉस्पिटल की छत पर 180 केवीए की कैपासिटी वाला रूफ टॉप सोलर प्लांट लगाया गया था। लेकिन इसका इस्तेमाल कभी किया ही नहीं गया। अब तो पैनल भी बेकार होते जा रहे हैं। लेकिन अब भी प्रबंधन इस ओर ध्यान नहीं दे रहा। न तो इसे ठीक कराया जा रहा है और न ही इसे उपयोग में लाया जा रहा है। इस वजह से हॉस्पिटल पर बिजली मद में खर्च का अतिरिक्त भार बढ़ता ही जा रहा हैै। सोलर पैनल के उचित तरीके से इस्तेमाल होने पर न सिर्फ बिजली कटौती के वक्त पावर सप्लाई होती रहती, बल्कि बिजली के कम इस्तेमाल पर हॉस्पिटल के बिजली मद में होने वाले खर्च भी कम किए जा सकते थे। इसके अलावा मरीजों को निर्बाध बिजली भी आपूर्ति हो सकती थी। लेकिन अधिकारियों की इच्छा शक्ति में कमी के कारण हॉस्पिटल में भर्ती मरीज को इसकी परेशानी झेलनी पड़ रही है।
24 घंटे पावर सप्लाई की थी बात
पैनल के काम नहीं करने की वजह से हॉस्पिटल में 24 घंटे पावर सप्लाई का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। अस्पताल में आज भी बिजली कटौती होती है, लेकिन प्रबंधन के पास विकल्प होते हुए भी वह इसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। सिर्फ बिजली मद में हॉस्पिटल करोड़ो रुपए का भुगतान करता है। एक अनुमान के अनुसार, सदर हॉस्पिटल में हर महीने लाखों रुपए का बिजली बिल आता है। कभी चार तो कभी पांच लाख बिजली का बिल सदर हॉस्पिटल का रहता है। गर्मी के मौसम में बिजली का बिल बढ़ जाता है। इसी खर्च को बचाने के लिए अस्पताल में सोलर प्लांट लगा था। लेकिन दुर्भाग्य कि बात है कि इस प्लांट का सही इस्तेमाल भी हॉस्पिटल प्रबंधन नहीं कर पा रहा है।
एक से डेढ़ लाख का जल रहा डीजल
हॉस्पिटल के कर्मचारियों की मानें तो बिजली बिल के अलावा हर महीने एक से डेढ़ लाख रुपए का डीजल लग जाता है। बिजली नहीं होने पर जेनरेटर चलता है जो बगैर डीजल के चल नहीं सकता। हॉस्पिटल में 500 हॉर्सपावर का एक जेनसेट लगा है। जिसमें हर महीने करीब 1200 से 1600 लीटर डीजल की खपत होती है। किसी भी हॉस्पिटल में इमरजेंसी, ऑपरेशन और टेस्ट आदि को देखते हुए बिना ब्रेक हुए पॉवर सप्लाई की जरूरत होती है। लेकिन सुपर स्पेशियलिटी सदर हॉस्पिटल में बिजली व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है। हॉस्पिटल में लगे सोलर प्लांट से करीब 18 लाख वाट बिजली प्रोडक्शन हो सकता है। इससे बिजली में होने वाला भारी भरकम खर्च भी रोका जा सकता है।
सोलर प्लांट का शुरू नहीं होना दुर्भाग्य की बात है। सभी कमियों की जांच की जा रही है। आने वाले दिनों में सभी खामियों को दुरुस्त किया जाएगा।
-डॉ प्रभात कुमार, सिविल सर्जन