रांची (ब्यूरो) । आज जो छात्र यूनिवर्सिटी में आये हैं, समाज ने उन्हें स्कूल के स्तर पर काफी काट-छांट कर भेजा है। हमें उन्हे पढ़ाने के पहले उनके बचपन को पढऩा होगा। बुधवार को 20वीं गुरु दक्षता इंडक्शन प्रोग्राम के तहत यूजीसी एचआरडीसी, मोरहाबादी में नोइंग चाइल्ड साइकोलॉजी पर अपने व्याख्यान के दौरान यह बातें डॉ विनय भरत ने कहीं। उन्होंने कहा कि बच्चों के नैसर्गिक गुणों, जिनमें उनका साहसी और ईमानदार होना, वर्तमान में रहना खास बिंदु है, उसे समाज धीरे- धीरे तोड़ता जाता है और स्कूल से कॉलेज तक आते-आते उसके जिन्दगी में 1000 हां के मुकाबले 1 लाख ना को आरोपित कर जिन्दगी को नाकारात्मक बना देता है। जिससे उसमें आत्मविश्वास जिस उम्र में सबसे 'यादा चाहिए, उसी उम्र में उसका सबसे 'यादा अभाव पैदा कर देता है।

पालन करना चाहिए

अधिकांश अभिभवाक को 3 एफ का नियम पालन करना चाहिए। मतलब, अपने निर्णय में फर्म रहें, अपने निर्णय में फेयर रहें अर्थात, घर में जो नियम ब'चों के लिए हो, वही नियम उनके लिए भी हो और तीसरे कि वे ब'चों के साथ फन (मस्ती) में रहें। ब'चों को जबरदस्ती करके काम कराने से अ'छा है आप दोस्त बनकर काम.कराएं और सिखाएं। कॉलेज में पहले सेमेस्टर में अंक का स्तर अगर थोड़ा कडाई पूर्वक देखा जाए तो ब'चे बाद के सेमेस्टर में उस बेंच मार्क को पूरा करने के लिए अत्यधिक मेहनत करेंगे। लेकिन उसके ठीक उलट अगर उनको प्रारम्भ से ही उदारवादिता के साथ अंक दिए जाएं तो बाद के सेमेस्टर में वे बेमानी मांगों पर आंदोलनरत हो जाया करेंगे। हमलोगों के समय में उत्तर पुस्तिकाओं का कडा मूल्यांकन मुख्य कारण था कि हम आज के ब'चों के अंक पर जोर से 'यादा जोर ज्ञान पर देते थे। इस पूरे सत्र में डॉ विनय भरत ने छात्रों में उनके खो गए नैसर्गिक गुणों (वर्तमान में रहना, खुश रहना, क्रिएटिव होना, निर्भीक होना) को वापस लाने पर जोर दिया और कुछेक तरीकों पर भी विस्तृत प्रकाश डाला। वहीं कोर्स कॉर्डिनेटर डॉ सुनीता कुमारी ने विषय प्रवेश कराया।