आजमाया हर job में हाथ

सतीश ने अपनी पढ़ाई के दौरान टाटा के एक होटल में हाउस कीपर की जॉब की। डोर टू डोर सेल्स मैन का काम किया। खर्च पूरा करने के लिए स्कूल वैन से बच्चों को स्कूल पहुंचाने का भी काम किया। इसके अलावा पार्ट टाइम कंप्यूटर ऑपरेटर भी बने। सतीश वेस्ट सिंहभूम चाईबासा के रहनेवाले है। वो बताते है कि उनके पिताजी का निधन 2000 में हो गया। उन पर पूरी फैमिली का प्रेशर आ गया। उस समय वो मात्र 20 साल के थे। पैसे की कमी के चलते इन्हें पढ़ाई भी छोडऩी पड़ी। लेकिन कभी जिंदगी से हार नहीं मानी। बाद में कुछ कमाने खाने टाटा आ गए।


बने hotel में housekeeper
काफी खोजने के बाद उन्हें टाटा के एक होटल में हाउसकीपर की जॉब मिली और वो 1500 से 2000 रुपए कमाने लगे। उसके बाद उन्होंने डोर टू डोर सेल्स मैन का भी काम किया। फिर नोवामुंडी जमशेदपुर में कंप्यूटर ऑपरेटर का। लेकिन इतने पर भी खर्च पूरा नहीं हो पाता था, तो पुरानी मारुति वैन खरीद कर बच्चों को स्कूल पहुंचाने लगे।

 

English spoken class
सतीश अपनी आपबीती बताते हुए थोड़े भावुक हो उठते है। कहते है-हमने अपनी पढ़ाई पिताजी की डेथ के बाद छोड़ दी थी। छह साल बाद फिर से 2006 में टाटा कॉलेज चाईबासा से डिग्री ली। उस समय तक इंगलिश नहीं आती थी, इसलिए स्पोकेन इंगलिश ज्वाइन किया।

Girl friend ने की मदद
सतीश को उनकी गर्ल फ्रेंड का संघर्ष के दिनों में हमेशा साथ मिला। आईआईएम के सेकंड ईयर में आर्थिक मदद देने के उद्देश्य से गर्ल फ्रेंड एक सरकारी स्कूल में टीचर के रूप में काम भी करने लगी। सतीश चंद्र बिरूली ने टाटा कॉलेज, चाईबासा में 2006 में ग्र्रेजुएशन के लिए एडमिशन ले लिया। छह साल के बाद फिर से पढ़ाई शुरू की। 2009 में आयोजित कैट एग्जाम में 80.8 परसेंटाइल पाने में सफल रहे, जिसके बाद आईआईएम रांची के फस्र्ट बैच में उनका एडमिशन हो गया। फाइनल ईयर के प्लेसमेंट में दो कंपनियों से दस लाख रुपए जॉब का ऑफर मिला है।