रांची (ब्यूरो) । ब्रह्माकुमारी संस्थान मेें सोमवार को यज्ञ की प्रथम समन्वयक दीदी मनमोहिनी का स्मृति दिवस मनाया गया। इस अवसर पर शैलजा फाउंडेशन की अध्यक्ष पुनम गर्ग, ह्युंडाई मोटर्स के अमरजीत तथा रा'य राजयोग केन्द्र की इंंचार्ज अर्चना ने दीदी को श्रद्धासुमन अर्पित की। ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन, नाबार्ड के डीजीएम सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा मनमोहिनी दीदी में अनेकानेक गुण थे। वे ज्ञानमूर्ति, गुणमूर्ति, योगमूर्ति और वात्सल्यमूर्ति थीं। शैलजा फाउंडेशन की अध्यक्ष पूनम गर्ग ने कहा संस्कार परिवर्तन करने की सेवा में दक्ष मनमोहिनी दीदी का दुसरों को ज्ञान योग के मार्ग पर लाने का तरीका निराला था। हुंडाई मोटर्स के अमरजीत ने कहा मनमोहिनी दीदी में परखने की शक्तिशाली शक्ति थी। वे एक कुशल पत्र लेखिका थीं। रा'य राजयोग केन्द्र की इंचार्ज अर्चना ने कहा मनमोहिनी दीदी संक्षेप में ही पत्र एवं प्रश्नोत्तर द्वारा सोये हुए लोगों को जगा देती थीं।
आधार स्तंभ बनकर रहीं
प्रशासनिक कुशलता के साथ- साथ त्यागमय जीवन था। यज्ञ की एक मजबूत आधार स्तंभ बनकर रहीं। दीदी जी का जीवन हम सभी के लिए अनुकरणीय है। केन्द संचालिका ब्रह्माकमारी निर्मला बहन ने कहा कि मनमोहिनी दीदी जी का जन्म हैदराबाद के जाने माने धनाढ्य़ परिवार मेंं हुआ था। दीदी जी का लौकिक नाम गोपी था। बाल्यकाल से सत्संग में रूचि एवं गीताज्ञान से विशेष प्रेम था। उन्होंने भगवान के प्रेम में अपनी सुध-बुध खो दी थी। दीदी के मन में भी भगवान से मिलने के भाव उत्पन्न होते थे। उनके स'चे दिल की आश पुरी हुई। जिस स'चे गीता ज्ञानदाता की उन्हें खोज की थी वह उन्हें मिल गया। लौकिक पिता के असमय देह त्याग के कारण उनकी माता अशांत रहती थीं तभी उन्हें दादा लेखराज के सत्संग के बारे में पता चला। माता ने सत्संग में जाना आरंभ किया। दादा लेखराज प्रतिदिन अपने निवास स्थान पर ऐसी प्रभावशाली एवं मधुर रीति से गीता सुनाते कि वस मन उसी में रम जाता। उनके मन में वैराग्य तो था ही उन्हें वहां प्रभु स्मृति का आनंद प्राप्त होने लगा। शीघ्र ही दीदी जी भी प्रभु मिलन की आश लिये वहां गई। वहां उन्होंने देखा ब्रह्मा बाबा के मुख मंडल से पवित्रता का तेज की चांदनी बरस रही थी। दीदी जी भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।