रांची(ब्यूरो)। क्राइम का ग्राफ कभी नीचे आ रहा है। अक्सर यहां क्राइम की कोई न कोई वारदात होती ही रहती है। कभी लूट, कभी मर्डर तो कभी चोरी की वारदात को अंजाम देकर अपराधी पुलिस को चुनौती देते रहते हैं। पुलिस भी कार्रवाई करती है। लेकिन समस्या यह है कि पुलिस अपराध से जुड़े सरगना या मास्टरमाइंड तक पहुंच ही नहीं पाती। सिर्फ गुर्गों को गिरफ्तार कर जेल भेज कर पुलिस फाइल बंद कर देती है। इधर, अपराध की दुनिया के सरगना दूसरा हथियार तैयार कर लेते हैं। दरअसल, रांची पुलिस वारदात के इन्वेस्टिगेशन पर फोकस नहीं करती है। मौका-ए-वारदात पर जो अपराधी पुलिस के हाथ लगा सिर्फ उसे ही उठाकर जेल में डालने तक ही पुलिस ने अपना काम समझ लिया है। कई ऐसे बड़े-बड़े मामले हैं जो इन्वेस्टिगेशन की कमी के कारण लटके हुए हैं। वहीं, ब्राउन शुगर, अफीम, गांजा की तस्करी करने वाले पैडलर्स को पकडऩे में तो पुलिस सफल रहती है, लेकिन इसके भी सरगना जो मास्टर माइंड है, जिसके इशारे पर सारा खेल चलता है पुलिस आज तक उसे पकड़ ही नहीं पाई।

सरगना की पहुंच ऊपर तक

ब्राउन शुगर के धंधेबाज हर तिकड़म में माहिर होते हैं। कानून से बचने के तरीके भी जानते हैं। इस कारण कई बार पकड़े जाते हैं और जल्द जेल से छूट भी जाते हैं। और फिर से काले कारनामे में जुट जाते हैं। इनके आका या सफेदपोश सरगना की पकड़ ऊपर तक होती है। जब भी कोई पैडलर पकड़ा जाता है तो झारखंड पुलिस उसे विक्रेता न बताकर केस डायरी में उपभोक्ता (ग्राहक) बता देती है, जिससे केस हल्का हो जाता है। साथ ही बरामद ब्राउन शुगर की मात्रा भी केस डायरी में कम दिखाई जाती है। इस कारण कोई विशेष मामला नहीं बनता है और आरोपी कुछ माह में ही जेल से छूट जाता है। बाहर आते ही वह फिर से इसी धंधे में लग जाता है। इस प्रकार पुलिस और आरोपी का ये खेल चलता रहता है। यदि सरगना को पकड़ पुलिस कठोर एक्ट लगाते हुए अंदर करे तो नशीले पदार्थों का कारोबार ठंडा पड़ जाएगा। लेकिन, इससे पुलिस और अपराधी दोनों को नुकसान है।

धंधे में नाबालिग का इस्तेमाल

कई बार चोरी, छिनतई, नशीले पदार्थों की बिक्री हो या अपराध से जुड़ा कोई और धंधा, रिंग मास्टर इस धंधे में नाबालिग लडक़ों का इस्तेमाल करते हैं। नाबालिग के पकड़े जाने के बाद या तो कुछ ही दिन में बाहर आ जाते हैं या फिर उन्हें बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है। ऐसे में नाबालिगों से पुलिस जोर जबरदस्ती भी नहीं करती और कम उम्र के ब'चों को ज्यादा कुछ मालूम भी नहीं होता। उन्हें सिर्फ कुछ पैसे देकर उनका इस्तेमाल किया जाता है।

केस स्टडी-1

दो साल में भी लूटकांड का मास्टरमाइंड नहीं धराया

ठाकुरगांव थाना क्षेत्र में दो साल पहले एक लूटकांड को अंजाम दिया गया। इसके बाद और इससे पहले भी कई लूट की वारदात हुईं। इसमें शामिल मास्टरमाइंड सजीबुल अंसारी को पुुलिस आज तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है। ठाकुरगांव के अलावा तीन और थानों में सजीबुल अंसारी पर लूट के मामले दर्ज हैं। पुलिस ने उसे पकडऩे के लिए छापेमारी तो की, लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही रहे।

केस स्टडी-2

20 महीने से फरार है अवैध पत्थर माइनिंग का सरगना

अवैध पत्थर माइनिंग का सरगना राजेश यादव उर्फ दाहू यादव 20 महीने से फरार है। पुलिस उसकी तलाश में छापेमारी कर रही है। लेकिन उस तक पहुंच ही नहीं पा रही है। पुलिस के साथ-साथ ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों के लिए भी दाहू यादव चुनौती बना हुआ है। सीबीआई की टीम बीते साल दिसंबर महीने में दाहू के आवास तक पहुंची, लेकिन 40 मिनट तक रुकने के बाद वापस लौट आई। अवैध खनन मामले में दाहू यादव के खिलाफ ईडी अदालत में चार्जशीट फाइल कर चुकी है। उसकी गिरफ्तारी के लिए अब तक 100 से भी ज्यादा छापेमारी हो चुकी है, लेकिन पुलिस उसकी छाया तक भी नहीं पहुंच पाई है।

केस स्टडी-3

वर्षों से चल रहा मटका व सट्टा का खेल, मास्टरमाइंड नहीं धराया

रांची में मटका और इल्लीगल सट्टा का कारोबार बीते कई वर्षों से चल रहा है। कभी-कभार पुलिस प्रेशर में छापेमारी कर कुछ एक अपराधियों को अरेस्ट कर लेती है। लेकिन इसके मास्टरमाइंड बंटी सिंह को पुलिस आज तक नहीं पकड़ पाई है। मटका के खिलाफ हमेशा पुलिस छापेमारी करती है, लेकिन हर छापेमारी में सरगना बच निकलता है। यह पुलिसिया कार्रवाई पर सवाल खड़े करता है। रांची में करीब तीन दर्जन से ज्यादा अड्डों पर हर दिन 50 लाख से ज्यादा के दांव लगते हैं। इस हिसाब से हर महीने 15 करोड़ तक का मटका का कारोबार हो रहा है। इस पूरे खेल में सटोरियों से लेकर पुलिस भी शामिल है।

केस स्टडी-4

वाहन चोर गिरोह सक्रिय पर कभी नहीं धराया सरगना

राजधानी रांची में बाइक चोर गिरोह भी सक्रिय है। वाहन चोरी की शिकायत के बाद पुलिस कार्रवाई तो करती है, लेकिन वाहन चोर को पकडऩे में पुलिस को सफलता जल्दी नहीं मिल पाती। हालांकि, वाहन चेकिंग अभियान के दौरान पुलिस गिरोह के कुछ सदस्यों को पकडऩे में सफल रही है। लेकिन गिरोह का सरगना कभी पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया। वाहन चोरों का अलग-अलग गिरोह राजधानी में एक्टिव है। इसमें भी गिरोह के सरगना नाबालिगों का इस्तेमाल करते हैं।