रांची (ब्यूरो) । भोग कहता है मैं शरीर हूं, योग कहता है मैं शरीर से भिन्न एक आत्मा हूं। तप या राजयोग का उद्देश्य आत्मा और शरीर की विकृतियों को मिटाकर सन्तुलन पैदा करना है। यदि शरीर के साथ जुड़ी तृष्णाओं का पुल टूट जाये तो हम जान सकें कि मैं एक उर्जा हूं, माटी नहीं राजयोग की यात्रा स्थूल से सूक्ष्म की ओर, पदार्थ से उर्जा की ओर, देह से देही आत्मा की ओर है। ये उद्गार ब्रह्माकुमारी की निर्मला बहन ने अभिव्यक्त किए। उन्होंने कहा यह जीवन इन्द्रियों की प्यास बुझाने के लिए नहीं है तृष्णाओं को
माला में पिरोकर प्रभु को बलिहार कर दे तो समाप्त हो जायेंगी।
पुरुषार्थ करने लगती हैं
राजयोग के अभ्यास से मन की बंद भावनाएं गुम होने लगती हं। नेक नियती संग होने लगती हंै। राजयोग के अभ्यास से अनेक आत्माएं अपना श्रेष्ठ भाग्य बनाने के लिए आध्यात्मिक पुरुषार्थ करने लग जाती हैं।
निर्मला बहन ने कहा परमात्मा द्वारा उद्घाटित शाश्वत सत्यों के आधार पर शिव के स्वरूप और गुणों का चिन्तन करते हुए मानसिक विकृतियों को दग्ध कर देना ही योग है। बाहरी प्रदूषण का मूल कारण मानव का काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से भरा हुआ स्वभाव मन है। इनको दूर करने का तरीका है।
गांठे खुल जाती हैं
स्वच्छ राजयोगी जीवन पद्धति अर्थात् 7 मूल गुणों पर आधारित जीवन पद्धति राजयोग अभ्यास से आपसी
संबंधों की उलझी हुई गांठे खुल जाती हैं और गधुर संबंध विकसित करने की कला आ जाती है। ईश्वरीय
विश्वविद्यालय एक आध्यात्मिक उर्जाघर है जहां से अपना संबन्ध जोड़ कर स्वयं को हम प्रकाशित कर सकते हैं। जब तक भगवान स्वयं अवतरित होकर अपना परिचय न दें तब तक सर्वोत्तम सहज राजयोग अन्य कोई नहीं सिखा सकता। उनके द्वारा बताये गये राजयोग अभ्यास से मानव रोग, शोक, चिन्ता को जीतकर तनाव मुक्त जीवन का आनन्द ले सकता है।