RANCHI: कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण लॉकडाउन भी एक्सटेंड किया जा रहा है। अब लॉकडाउन का तीसरा फेज शुरू हो चुका है। लेकिन लॉकडाउन अब थैलेसीमिया के मरीजों की परेशानी बढ़ाने का काम कर रहा है। इस वजह से उन्हें जहां ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए सेंटर पहुंचने में परेशानी हो रही है। वहीं खून के लिए दो-तीन दिन तक इंतजार भी करना पड़ रहा है। इसके बावजूद सभी थैलेसीमिया के मरीजों को पर्याप्त ब्लड नहीं मिल पा रहा है। इतना ही नहीं, कोरोना के डर की वजह से लोग ब्लड डोनेट करने के लिए भी आगे नहीं आ रहे हैं। नतीजन, ब्लड का स्टॉक भी खत्म होने के कगार पर आ गया है।
सदर डे केयर सेंटर में 560 पेशेंट्स
सदर हॉस्पिटल में डे केयर सेंटर की शुरुआत की गई है, जहां पर पूरे स्टेट से 560 थैलेसीमिया के मरीज रजिस्टर्ड हैं। इन्हें महीनें में दो से तीन बार ब्लड चढ़ाने के लिए आना ही पड़ता है। लेकिन, लॉकडाउन के कारण बाहर से आने वाले मरीज अब नहीं के बराबर आ रहे हैं। ऐसे मरीजों के लिए डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में व्यवस्था करने को कहा गया है ताकि किसी की खून की कमी के कारण जान न चली जाए।
डिमांड 10, मिल रहा 4 यूनिट
सदर डे केयर में वैसे तो 20 थैलेसीमिया मरीज हर दिन आते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण बाहर से वाले मरीज तो आने बंद हो गए। अब रांची वाले मरीज ही खून चढ़ाने के लिए आते हैं। ऐसे में हर दिन की डिमांड 9-10 यूनिट की है। लेकिन रिम्स से उन्हें मात्र 4 यूनिट ही खून दिया जाता है। उसमें भी प्रॉसेस करने में काफी समय लग जाता है। इस वजह से मरीजों के पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
दो दिन बाद बुला रहे मरीजों को
राज्य का सबसे बड़ा हॉस्पिटल रिम्स है। ऐसे में ब्लड बैंक भी एक हजार यूनिट की कैपासिटी वाला है। लेकिन, इतने बड़े ब्लड बैंक में मात्र13 यूनिट ब्लड ही अवेलेबल है। उसमें भी कई ग्रुप का तो एक भी यूनिट नहीं बचा है। ऐसे में डिमांड होने पर डोनर का इंतजार करना पड़ रहा है। इस वजह से मरीजों को दो दिन बाद आने को कहा जाता है। ऐसे में कभी भी थैलेसीमिया मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
कैंप में नहीं आ रहे ब्लड डोनर्स
झारखंड एड्स कंट्रोल सोसायटी, रिम्स और अन्य ग्रुप्स की ओर से ब्लड डोनेशन कैंप तो लगाए जा रहे हैं। लेकिन कोरोना का डर लोगों में ऐसा समा गया है कि वे कैंप में आना ही नहीं चाहते। जिससे कि कैंप लगाने के बाद भी थोड़ा बहुत ही ब्लड कलेक्ट हो पाता है। उसमें से कुछ यूनिट रिम्स अपने लिए रिजर्व रखता है। इसके बाद ही सदर को 2-4 यूनिट ब्लड दिया जाता है। इस वजह से भी मरीजों को समय से खून नहीं मिल पा रहा।
थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिजीज
थैलेसीमिया एक जेनेटिक डिजीज है। यह बच्चों को माता-पिता से आनुवांशिक तौर पर मिलने वाला ब्लड डिजीज है। इस बीमारी में बॉडी में हीमोग्लोबिन का प्रोडक्शन गड़बड़ा जाता है। इस वजह से खून की कमी होने लगती है। एक्सपर्ट्स की मानें तो रेड ब्लड पार्टिकल्स की उम्र 120 दिन होती है, लेकिन ऐसे मरीजों में पार्टिकल की लाइफ 20 दिन में ही खत्म हो जाती है। इस वजह से उन्हें खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है।
सेंटर में जो पेशेंट्स आते हैं उन्हें तो हम ब्लड ट्रांसफ्यूजन कर देते हैं। लेकिन, जब हमें ब्लड ही अवेलबल नहीं होगा तो हम कैसे देंगे। डिमांड दस यूनिट की भेजी जाती है तो रिम्स से हमें 3-4 यूनिट ही भेजा जाता है। ऐसे में हम मरीजों के परिजनों को दो-तीन दिन बाद कॉल कर आने को कहते हैं, जिससे कि आने के बाद उन्हें दिक्कत न हो। कैंप जो लगाए जाते हैं तो कुछ यूनिट तो ब्लड आता है। लेकिन रिम्स उसमें से भी हमें गिनती का ही देता है। इस वजह से परेशानी तो होती है।
-अतुल गेरा, वॉलेंटियर, झारखंड थैलेसीमिया फाउंडेशन