-मेडिकल स्टोर्स में खुलेआम नहीं बेची जा सकेगी टीबी की दवाई, लेनी होगी इजाजत
- जिस मरीज को दवा बेचेंगे, उसकी पूरी जानकारी दवा दुकानदारों को देना होगा जरूरी
- ड्रग इंस्पेक्टर और सुपरवाइजर करेंगे मॉनिटरिंग, टीबी डिपार्टमेंट ने जारी किए गाइडलाइन
सुपरवाइजर करेंगे निगरानी
टीबी के इलाज में दी जाने वाली रिफांपसीन दवा लेप्रोसी के ट्रीटमेंट में भी इस्तेमाल की जाती है। ऐसे में इस दवा की बिक्री पर रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन मेडिकल स्टोर वालों को यह बताना होगा कि ये दवा किस मरीज को दी गई है। इस बाबत निगरानी के लिए जोनल स्तर पर सुपरवाइजरों को तैनात किया जा रहा है, जो आन द स्पॉट मेडिकल शॉप्स में जाकर यह वेरीफाई करेंगे कि दवा टीबी के मरीज को ही दी गई है अथवा किसी और को।
ड्रग इंस्पेक्टर को भी जिम्मा
सिटी में हजारों दवा दुकानें हैं, ऐसे में दवा दुकानदारों पर नजर रखने की जिम्मेवारी ड्रग इंस्पेक्टरों के कंधों पर होगी। हर जोन के ड्रग इंस्पेक्टर्स को सख्त निर्देश दिया गया है। उन्हें दवा दुकानों के बारे में बताना होगा कि किस-किस दुकान में टीबी की दवा बिक रही है।
2025 में टीबी को करना है जड़ से खत्म
हर साल मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है। एक साल के अंदर रांची व आसपास के इलाकों से सात हजार से अधिक मरीज आ चुके है। ऐसे में डॉट सेंटर के अलावा प्राइवेट सेंटरों में आने वाले टीबी मरीजों का भी डिटेल डिपार्टमेंट के पास उपलब्ध हो, इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि 2025 तक टीबी का नामों निशान खत्म करने की तैयारी है।
अब नया कानून आ गया
टीबी के मरीज इलाज के लिए आते हैं, तो डॉट सेंटर में इसकी जानकारी मिल जाती है। लेकिन, प्राइवेट सेंटरों पर आने वाले मरीजों का पता नहीं चल पाता। ऐसे में प्राइवेट डॉक्टरों को भी मरीज की जानकारी देने पर प्रोत्साहन दी जा रही है। अब नया कानून आ गया है कि दुकानदारों को भी टीबी की दवा बेचने की जानकारी देनी होगी। उन्हें मरीज के बारे में भी बताना होगा। अगर जानकारी नहीं देंगे तो उन्हें जेल जाना होगा।
डॉ वीबी प्रसाद, जिला टीबी अधिकारी, रांची