रांची (रांची) । स्थानीय जिला स्कूल मैदान में समय इंडिया, नई दिल्ली की ओर से जारी 10 दिवसीय राष्ट्रीय पुस्तक मेला में विभिन्न स्टालों पर यहां से वहां तक पसरी बेइंतहा पुस्तकों से रांची और आसपास के लगभग 50 हजार पुस्तक प्रेमियों ने मुलाकात की। इनमें सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की रही। अक्सर यह कहा जाता है कि युवाओं में किताबों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं है। लेकिन रांची के इस पुस्तक मेले ने यह मिथ तोड़ दिया है। यहां युवा पुस्तक प्रेमी भारी तादाद में आए और अपनी पसंद की पुस्तकें खरीदी भी। इससे साबित होता है कि किताबों का क्रेज आज ही बरकरार है।
पुस्तकें खरीदते दिखे
रविवार की रात 8 बजे तक पुस्तक प्रेमी स्टॉल्स पर अपनी पसंद की पुस्तकें खरीदते दिखे। पुस्तक मेले का आखिरी दिन होने के कारण परिसर में गहमागहमी दिखी। पुस्तक मेला के संयोजक एवं समय इंडिया के प्रबंध न्यासी लेखक पत्रकार चंद्रभूषण ने व्यावसायिक मोर्चे पर आंकड़ों का गणित सामने रखते हुए कहा कि 10 वर्षों के अंतराल बाद रांची के जिला स्कूल में 10 दिनों के भीतर 50 हजार पुस्तक प्रेमियों का किताबें के करीब आना और 40- से 42 हजार किताबों की बिक्री होना इस बात का सबूत है कि पुस्तक प्रेमियों के भीतर किताबों की ललक जीवित है।
परिवार में पहुंचना
मेले के दौरान हर हाथ में एक किताब का होना और इन हाथों से होकर किताबों का घर परिवार में पहुंचना सुखद एहसास है। पुस्तक मेले के आयोजन के पीछे आखिर संस्था की मंशा यही है की किताबों और पाठकों के बीच की टूटी हुई कड़ियों को जोड़ा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तक मेला एक तरह से कुएं का प्यासे के करीब आना है। ज्ञान का सागर आपके बीच उपस्थित है अब आपके हिस्से में है कि सागर से मोती चुन लें। अपनी ज्ञान की भूख मिटा लें।
पुस्तक मेला में संपन्न प्रतियोगिता के विभिन्न प्रतिभागियों को सांसद संजय सेठ ने सम्मानित किया। साथ ही सांस्कृतिक संध्या के तहत विभिन्न कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। इन सभी का पुस्तक प्रेमियों ने भरपूर आनंद उठाया।
समृद्ध है जनजातीय
पुस्तक मेले में झारखंड के जनजातीय साहित्य पर भी मेला परिसर में परिचर्चा हुई$ इस कड़ी में झारखंड के जनजातीय साहित्य पर चर्चा की अध्यक्षता करते हुए कुरमाली भाषा और साहित्य के मूर्धन्य विद्वान एवं परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजाराम महतो ने कहा कि झारखंड का जनजातीय साहित्य समृद्ध और संपन्न है$ मौके पर डॉ माया प्रसाद ने कहा कि झारखंड का जनजातीय साहित्य विविधता में एकता का विलक्षण उदाहरण प्रस्तुत करता है$ डॉ रामप्रसाद, पूर्व नागपुरी विभागाध्यक्ष सह साहित्यकार, गोस्सनर कॉलेज ने झारखंडी भाषाओं के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डाला$ डॉ हाराधन कोईरी, सहायक प्राध्यापक सह पंच परगनिया साहित्यकार, गोस्सनर महाविद्यालय ने पंच परगनिया साहित्य के महत्व पर प्रकाश डाला$ इस परिचर्चा में अनेक विद्वानों ने भाग लिया, जिनमें डॉ राजश्री जयंती, डॉ करण मिंज, नागपुरी विभागाध्यक्ष सह खोरठा साहित्यकार, जनजातीय क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची, डॉ संध्या चौधरी उर्वशी, डॉ वासुदेव प्रसाद, शाश्वत बीएड कॉलेज के अध्यक्ष डॉ अनिल कुमार शर्मा, उनके सहयोगी सुरेश सिंह, डॉ रुपेश कुमार डॉ नागेंद्र सिंह लक्ष्मण प्रसाद, डॉ प्रमोद कुमार झा, डॉ श्रीनिवास ठाकुर ने उपस्थित होकर अपने विचार व्यक्त किए।