रांची(ब्यूरो)। सिटी में कोई ऐसा दिन नहीं जब कोई क्राइम न होता हो। चोरी-छिनतई तो जैसे आम बात हो गई है। इसके अलावा लूट, मर्डर जैसे संगीन अपराध भी आए दिन हो रहे हैं। इसे कंट्रोल करने के लिए शहर में पुलिस स्टेशन तो है, लेकिन स्ट्रेंथ कम होने की वजह से क्रिमिनल पर कोई दबाव नहीं बन रहा है। वहीं, पुलिस स्टेशन के अलावा सिटी में 20 टीओपी यानी की टेंपररी आउटपोस्ट ऑफ पुलिस भी बनाए गए हैं। लेकिन स्थिति यह है कि इनमें सिर्फ तीन टीओपी का ही संचालन हो रहा है। 17 टीओपी बंद पड़े हुए हैं। कहीं ताला लटका है तो कहीं जवानों की तैनाती ही नहीं है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर बना टीओपी इन दिनों पूरी तरह डिफंक्ट हो चुका है। इसका फायदा कहीं न कहीं अपराधियों को जरूर हो रहा है। चोरी-छिनतई कर भागने वाले अपराधी को टीओपी के जवान दबोच सकते थे। यदि इसका इस्तेमाल सही से किया गया होता तो क्राइम का ग्राफ भी नीचे आता और अपराधी भी सलाखों के पीछे होते।
क्राइम कंट्रोल करना मुश्किल
सिटी में क्राइम कंट्रोल करना मुश्किल हो गया है। पहले से कैपासिटी की अपेक्षा कम पुलिसकर्मी होने से लोड बढ़ा हुआ है। ऐसे में अब टीओपी का बदहाल होना भी अपराधियों के लिए फायदेमंद है। अपराधी कांड को अंजाम देकर भागने में सफल रहते हैं। सबसे ज्यादा चोरी-छिनतई करने वाले अपराधी को इसका फायदा हो रहा है। चोरी-छिनतई को अंजाम देकर पुलिस को चकमा देकर ये लोग भागने में सफल रहते हैं। ये अपराधी ऐसे शातिर हैं कि पुलिस द्वारा लगाए गए सीसीटीवी कैमरे की नजर में भी आते। एक ओर तो पुलिस क्राइम कंट्रोल नहीं कर पा रही है। वहीं दूसरी ओर पहले से बने टीओपी और दूसरे केंद्र को भी सुचारू तरीके से नहीं चला पा रही।
सिर्फ 3 टीओपी में पुलिस
सिटी में करीब 20 और आसपास के इलाकों में पांच अस्थाई पुलिस केंद्र बनाए गए हैं। लेकिन सिर्फ तीन टीओपी ही सुचारू तरीके से संचालित हो रहे हैं। ये तीन टोओपी मोरहाबादी, रिम्स और खादगढ़ा बस स्टैंड में स्थित हैं। यहां पर्याप्त संख्या में पदाधिकारी और पुलिस के जवानों की तैनाती गई है। इसलिए इन टीओपी द्वारा कई अपराधियों को पकड़ा भी गया है। साथ ही यहां आने वाले लोगों को टीओपी से मदद भी मिलती है। इसके अलावा अन्य किसी भी टीओपी से आम लोगों की कोई मदद नहीं हो रही है और न ही पुलिस को किसी तरह से इसका लाभ मिल रहा है।
पुलिस हेल्प सेंटर में भी ताले
अपराधियों पर नियंत्रण रखने और आम लोगों की सहायता करने के उद्देश्य से टीओपी के अलावा सिटी में पुलिस हेल्प सेंटर भी खोले गए थे। लेकिन उसकी भी स्थिति वर्तमान में कुछ खास अच्छी नहीं है। पुलिस विभाग की ओर से शुरू किए गए हेल्प सर्विस सेंटर को आज खुद ही हेल्प की जरूरत है। राजधानी रांची के अलग-अलग इलाकों में पुलिस हेल्प सेंटर खोला गया था, लेकिन लगभग सभी में अब ताला लटक चुका है। पुलिस हेल्प सेंटर को भविष्य में और भी ज्यादा सुदृढ़ करने की योजना थी। लेकिन उद्घाटन के कुछ दिनों बाद ही हेल्प सेंटर हेल्पलेस हो गए हैं। रांची के डिबडीह, सहजानंद चौक, धुर्वा, कुसई कॉलोनी चौक, हिनू चौक, जगन्नाथपुर, चुटिया समेत अन्य स्थानों पर सेंटर खोले गए थे। इसमें सहजानंद चौक को छोड़कर बाकी सभी सेंटर में ताले लटक रहे हैं।
24 घंटे तैनाती के दावे फेल
शुरुआत में इस प्रोजेक्ट को और मजबूत करने की योजना थी। इस सेंटर पर 24 घंटे पुलिस कर्मी तैनात करने का दावा भी किया गया। कोई व्यक्ति यदि थाना नहीं जा सकता है या सड़क पर किसी व्यक्ति के साथ कुछ घटना घटी हो तो वो इन हेल्प सेंटर से मदद ले सकता था। लेकिन सहायता केंद्र बंद रहने के कारण कोई व्यक्ति चाहकर भी इसका लाभ नहीं उठा पा रहा है। बीट पुलिसिंग और किरायेदारों के वैरिफिकेशन में भी इस सेंटर का अहम रोल था। इन पुलिस सहायता केंद्र में सब इंस्पेक्टर स्तर के एक अधिकारी की तैनाती होनी थी, वो भी नहीं हुआ। अपराधियों पर पैनी नजर और क्रिमिनल एक्टिविटीज को भी इसी सेंटर से कंट्रोल करना था। इसके अलावा और भी सहायता केंद्र खोले जाने थे। लेकिन पहले से खुले सेंटर ही ऑपरेट नहीं हो रहे हैं। ऐसे में नए सेंटर खुलने की बात भी बेमानी है।
जवानों की कमी के कारण टीओपी और पुलिस हेल्प सेंटर का यूटिलाइज नहीं हो पा रहा है। जल्द ही निरीक्षण कर इन सेंटरों पर पुलिस की तैनाती कराई जाएगी, ताकि आम नागरिकों को इसका लाभ मिल सके।
-राजकुमार मेहता, सिटी एसपी, रांची