जमशेदपुर (ब्यूरो): सरायकेला छऊ में अब महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। सरायकेला स्थित राजकीय छऊ कला केंद्र के निदेशक और छऊ गुरु तपन कुमार पटनायक ने इस विधा से महिलाओं को जोडऩे का प्रयास शुरू किया। उन्होंने वर्ष 1995 से छऊ नृत्य से महिलाओं को जोडऩे का काम शुरू किया और अब इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। उस वक्त तत्कालीन मंत्री बैजनाथ राम से भी उन्हें मदद मिली। तपन कुमार कहते हैं कि विदेशी लड़कियां छऊ सीखने आती थीं, लेकिन यहां की बच्चियां नहीं सीख पाती थीं। इसे देखते हुए उन्होंने यह प्रयास शुरू किया। वर्तमान में सरायकेला छऊ में 30 महिलाएं हैं। इसी तरह मानभूम शैली में 15 और खरसावां शैली में 15 से ज्यादा महिलाएं अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं।

विदेशी महिलाएं आती हैं छऊ सीखने

हालांकि, छऊ लगातार आगे बढ़ता रहा और इसके गुरु और जानकार लगातार लोगों को प्रशिक्षण देते रहे और यह शैली आगे बढ़ती रही। हालांकि विदेशी महिलाएं इस शैली को सीखने जरूर आ रही थीं, लेकिन स्थानीय महिलाएं इससे दूर थीं। लेकिन स्थानीय महिलाओं की छऊ में भागीदारी को लेकर लगातार मंथन चलता रहा।

हेमली को मिला है राष्ट्रीय पुरस्कार

श्री पटनायक ने बताया कि सिल्ली की हेमली कुमारी छऊ कला की जानकार हैं। वे ढोल बजाती हैं और नाचती भी हैं। उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है। इतना ही नहीं अगर सरायकेला की बात करें तो यहां सात छऊ कलाकारों को पद्मश्री मिल चुका है।

छऊ की जननी है सरायकेला छऊ

तपन कुमार कहते हैं कि सरायकेला छऊ को छऊ कला की जननी कहते हैं। इसी से मानभूम शैली और खरसावां शैली की उत्पत्ति हुई। धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया और आज यह कला विदेशों तक धूम मचा रही है।

200 टाइप के थीम पर डांस

वे कहते हैं कि छऊ नृत्य में जिस थाट का उपयोग होता है वह प्रभु जगन्नाथ की अनुकृति है। छऊ उड़ीसा, बंगाल और झारखंड में है, लेकिन झारखंड में सबसे ज्यादा प्रचलित है। वे अपनी परंपरा को बरकरार रखे हुए हैं, लेकिन अलग-अलग थीम पर प्रस्तुति भी देने का प्रयास होता है। वे कहते हैं कि 200 टाइप के थीम पर डांस होता है। वे सेव एनवायरनमेंट और मानव प्रकृति की गाथा-सृष्टि की थीम पर भी छऊ नृत्य प्रस्तुत कर चुके हैं।

मुखौटा निर्माण से रोजगार

श्री पटनायक कहते हैं कि आज छऊ काफी फेमस है और इसमें काफी स्कोप है। मुखौटा निर्माण का काम अगर सही तरीके से हो तो यह काफी बेहतर होगा। वे कहते हैं कि छऊ का मुखौटा 250 से 300 रुपए तक का आता है तो मानभूम वाला छोटा मुखौटा 200 से 500 रुपए, जबकि बड़ा छाट 1000 रुपए से 3000 रुपए तक में आता है। वे कहते हैं कि हेड गियर बनाने में भी काफी स्कोप है।

महिलाओं के परदेस जाने पर की थी आपत्ति

छऊ की शुरुआत देश की आजादी से पहले से ही हो गई थी। वर्ष 1938 में सरायकेला-खरसावां राजघराने के वक्त रॉयल छऊ ग्रुप अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए विदेश गया था। उस दल में महिलाएं भी थीं, हालांकि उनकी संख्या इक्का-दुक्का ही थी। वापस लौटने पर महिलाओं के परदेस जाने पर आपत्ति जताई गई थी।

आज काफी संख्या में महिलाएं छऊ नृत्य सीख रही हैं और कई सीखकर अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं। यह सब देख अब जीवन सार्थक लग रहा है।

तपन कुमार पटनायक, छऊ गुरु