जमशेदपुर (ब्यूरो): हिंदू धर्म के सभी अहम व्रत-त्योहारों में से एक शीतला अष्टमी भी होती है, जो हर साल चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। बता दें कि शीतला अष्टमी को बसौड़ा अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार होली के आठवें दिन पड़ता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता को मीठे चावल का भोग लगाना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता की विधि-विधान के साथ पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और सभी बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है।

100 साल पुराना है

मारवाड़ी सम्मेलन साकची शाखा के अध्यक्ष सुरेश कुमार कांवटिया ने बताया कि साकची के ठाकुरबाड़ी रोड स्थित सत्यनारायण मारवाड़ी ठाकुरबाड़ी मंदिर परिसर स्थित शीतला मंदिर में भी सुबह से महिलाएं पूजा-अर्चना कर रही हैं। उन्होंने बताया कि शीतला माता का मंदिर की स्थापना हुए 100 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। बताया कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बासेड़ा पूजा की पुरानी परंपरा है। इस दिन श्रद्धालु के घर में भी चूल्हा नहीं जलता है। शीतला माता को एक दिन पहले बनाया हुआ प्रसाद चढ़ाया गया है। श्रृद्धालु भी इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे। शीतला मंदिर में सुबह पांच बजे से शीतला माता की पूजा हो रही है।

बासी खाने का नियम

बता दें कि शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना खाया जाता है और शीतला माता को अर्पित किया जाता है। यही कारण है कि इसे बसौड़ा भी कहते हैं। जिस जगह होली की पूजा होती है, उसी जगह बसौड़े की पूजा भी की जाती है। जो लोग अष्टमी की पूजा करते हैं, वो लोग सप्तमी की रात को ही खाना बना लेते हैं और अष्टमी वाले दिन इस बासी खाने को प्रसाद के रूप में शीतला माता को अर्पित करते हैं।