छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज व हॉस्पिटल में आई बैंक खुलने में हो रही देर पर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव डॉ। नीतिन मदन कुलकर्णी ने नाराजगी जाहिर की है। सचिव ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अस्पताल में आई बैंक स्थापित करने हेतु योजना स्वीकृत की जा चुकी है तथा राशि भी उपलब्ध है, किंतु स्थान चयन नहीं होने के कारण अब तक कार्रवाई बाधित है। इस बैंक को खोलने की कवायद बीते आठ साल से चल रही है। लेकिन अबतक जगह भी चयनित नहीं हो सका है। जबकि इस बैंक को खोलने के लिए सरकार 30 लाख रुपये फंड भी उपलब्ध करा चुकी है। इससे पूर्व तत्कालिन सचिव निधि खरे ने भी इस बैंक को खुलवाने के लिए हर संभव प्रयास किया था। उन्होंने अप्रैल 2018 तक किसी भी हाल में इसे खोलने का निर्देश दिया था।
नई बिल्डिंग में खुलना था
आई बैंक को लेकर बीते साल अप्रैल में स्टेट ब्लाइंडनेस प्रोग्राम की तीन सदस्यीय टीम ने एमजीएम का दौरा किया था। टीम ने आई बैंक खोलने के लिए नए भवन में जगह का चयन किया था। लेकिन अब उसमें पेच फंस गया है। अब पुराने भवन में खोलने की चर्चा हो रही है। निर्णय अभी नहीं लिया जा सका है।
दूसरे शहरों पर निर्भर
जिले में कॉर्निया कलेक्शन में रौशनी संस्था उत्कृष्ट कार्य कर रही है। पर जिले में एक भी आई बैंक स्थापित नहीं है। नतीजतन नेत्रहीनों को आंखों के लिए दूसरे शहरों पर निर्भर होना पड़ता है। भारत में लगभग 4.6 मिलियन लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीडि़त हैं। इसका समाधान नेत्रदान से हो सकता है। हमारे देश में नेत्रदान को लेकर काफी भ्रांतियां हैं जिसकी वजह से लोग नेत्रदान करने से कतराते हैं।
डोनेट कर सकते हैं आंखें
कोई भी इंसान नेत्रदान कर सकता है। इसमें उम्र कोई मायने नहीं रखती है बस जो व्यक्ति नेत्रदान करना चाहता है उसे आई बैंक में जाकर अपना पंजीकरण करवाना होता है। जिससे मरने के बाद उसकी आंखे किसी को दे दी जाएं।
आई बैंक खोलने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। जगह की कमी होने की वजह से थोड़ा परेशानी हो रही है लेकिन जल्द ही आई बैंक खोल लिया जाएगा।
- डॉ। अरुण कुमार, अधीक्षक, एमजीएम